Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 49
________________ 55. ववसायफलं विहवो विहवस्स य विहलजणसमुहरणं । विहलखरणेण जसो जसेण भण किं न पज्जत्तं ॥ 56. पाढत्ता सप्पुरिसेहि तुंगवबसायदिन्नहियरहि । कज्जारंभा होहिंति निष्फला कह चिरं कालं ॥ 57. विहवक्खए वि दाणं माणं बसणे विधीरिमा मरणे । कज्जसए वि अमोहो पसाहरणं धीरपुरिसाणं ॥ 58. दारिद्दय तुझ गुणा गोविज्जंता वि धीरपुरिसेहि। पाहुणएसु छणेसु य वसरणेसु य पायडा हुंति ॥ 59. दारिदय तुझ नमो जस्स पसाएण एरिसी रिखी। पेच्छामि सयललोए ते मह लोया न पेच्छंति ॥ 60. जे जे गणिणो जे जे वि माणिणो जे बियड्ढसमारणा। दालिद्द रे वियक्खण ताण तुमं साणुरानो सि ॥ 61. दीसंति जोयसिद्धा अंजणसिद्धा वि के वि वीसति । दारिद्दजोयसिद्ध मं ते लोया न पेच्छंति ॥ 20 ] [ वज्जालग्ग में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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