Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 47
________________ 49. ता वित्थिष्णं गयर ताव च्चिय जलहरा ग्रहगहीरा । ता गरुया कुलसेला जाव न धीरेहि तुल्लति ॥ 50. मेरू तिणं व सग्गो घरंगणं हत्यचित्तं गयरण्यलं । वाहलिया य समुद्दा साहसवतारण पुरिसारणं ॥ 51. तं कि पि साहसं साहसेण साहंति साहससहावा । जं भाविऊण दिव्यो परंमुहो घ्रुणइ नियसीसं ॥ 52. जह जह न समप्पड़ विहिवसेण विहडंत कज्जपरिणामो । तह तह घोराण मणे वडढइ बिउरणो समुच्छाहो ॥ 53. फलसंपत्तीइ समोरणयाइ तुंगाइ फलविपत्तीए । हिययाइ सुपुरिसाणं महातरूणं व सिहराई ॥ 54. हियए जाम्रो तत्थेव वढियो नेय पयडिग्रो लोए । ववसायपायवो सुपुरिसाण लक्खिज्जइ फलेहि ॥ 18 ] Jain Education International For Personal & Private Use Only [ वज्जालग्ग में www.jainelibrary.org

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