Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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94. रयणायरेण रयणं परिमुक्कं जह वि प्रमुरिणयगुणेण । तह बि हु मरगयखंड जत्थ गयं तत्थ वि महग्घं ॥
95. मा बोसं चिय गेव्हह विरले वि गुणे पसंसह जणस्स । प्रक्लपउरो वि उवही भगइ रयणायरो लोए ॥
1:
96. लच्छोह विणा रयणायरस्स गंभीरिमा तह न्वेव सा लक्छो तेण विरगा भण कस्स न मंदिरं पत्ता ॥
97. वडवाणलेण गहिश्रो महिश्रो य सुरासुरेहि समलेहि । लच्छोह उवहि मुक्को पेच्छह गंभीरिमा तस्स ॥
98. रयणेहि निरंतर पूरिएहि रयरगायरस्स न हु गव्वो । करिणो मुत्ताहलसंसए वि मयविग्भला बिट्ठी ॥
99. रयणायरस्स न हु होइ तुच्छिमा निग्गएहि रयगोह । तह विहु वंदसरिच्छा विरला रयणायरे रयणा ॥
100.
32 ]
जइ वि. हु कालवसेर ससी समुद्दाउ कह वि विडियो । तह वि हु तस्स पयासो प्रारणंवं कुरणइ दूरे वि ॥
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[ वज्जालग्ग में
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