Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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. 43. सिग्घं आरह कज्जं पारद्ध मा कह पि सिढिलेसु ।
पारदसिढिलियाई कज्जाइ पुरषो न सिज्झति.॥
44. झोणविहवो वि सुयणो सेवइ रणं न पत्थए अन्नं । . मरणे वि अइमहग्धं न विक्किणइ मारणमारिणक्कं ॥
45. नमिऊण जं विढप्पइ खलचलणं तिहुयणं पि किं तेण ।
मारणेण जं विढप्पइ तणं पि तं निम्वुई कुरणइ ॥
46. ते धन्ना ताण नमो ते गल्या माणिणो थिरारंभा ।
जे गरुयवसरणपडिपेल्लिया वि अन्नं न पत्थंति ॥
47. तुगो च्चिय होइ मेणो मणसिणो अंतिमासु वि वसासु ।
अत्यंतस्स वि रइणो किरणा उद्धं चिय फुरंति ॥
48. ता तुंगो मेरुगिरी मयरहरो ताव होइ वुत्तारो।
ता विसमा कज्जगई जाव न धीरा पवज्जति ॥
16 ]
[ वज्जालग्ग में
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