Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 43
________________ 37. जंजि खमेइ समत्थो घणवंतो जं न गव्वमुस्वहा । जं च सविज्जो नमिरो तिसु तेसु प्रलंकिया बहवो ॥ . 38. छंद जो अणुवट्टइ मम्मं रक्खइ गुणे पयासेइ । सो नवरि माणुसाणं देवाण वि वल्लहो होइ ॥ 39. लवरणसमो नत्थि रसो विनाणसमो य बंधवो नस्थि । धम्मसमो नस्थि निही कोहसमो वेरिनो नस्थि ॥ 40. कुप्पुत्तेहि कुलाइं गामणगराइ पिसुरणसोलेहि । नासंति कुमंतीहि नराहिवा सुट्ठ वि समिद्धा ॥ 41. मा होसु सुयग्गाही मा पत्तीय जं न दिलै पच्चक्खं । पच्चक्खे वि य विठे जुताजुत्तं वियारेह ॥ 42. अप्पारणं प्रमुणंता जे प्रारंभंति दुग्गमं कज्ज । परमुहपलोइयाणं ताणं कह होइ जयलच्छी ॥ 14 ] atral [ वज्जालग्ग में Jain Education International For Personal & Private Use Only Fear perto www.jainelibrary.org

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