Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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31. दूरदिव्या न दूरे सज्जणचित्ताण पुवमिलियारणं ।
गयणट्ठियो वि चंदो पासासइ कुमुयसंडाई॥
32. एमेव कह वि कस्स वि केरण वि विद्रुण होइ परिमोसो।
कमलायराण रहणा कि कज्जं जेरण वियसंति ॥ .
33. कत्तो उग्गमह रई कत्तो वियसंति पंकयषणाई।
सुयरणारण जए नेहो न चलइ दूरट्ठियाणं पि॥
34. संतेहि असंतेहि य परस्स किं जंपिएहि बोसेहिं ।
प्रत्थो जसो न लग्भइ सो वि अमित्तो कमो होइ॥
35. सोलं वरं कुलानो दालिहं भग्वयं च रोगाम्रो ।
विज्जा रज्जाउ वरं खमा वरं सुठ्ठ वि तवामो॥
.
36. सोलं वरं कुलामो कुलेज कि होइ विगयसोलेरण ।
कमलाइ कद्दमे संभवंति न ह हुंति मलिणाई॥
12 ]
[ वज्जालग्ग में
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