Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
25. तं मित्तं कायव्वं अं फिर वसणम्मि बेसकालम्मि । प्रालि हियभित्तिबाउल्लयं व न परंमुहं ठाइ ॥
26. छिज्जउ सीसं ग्रह होउ बंघणं चयउ सव्वहा लच्छी । पडिवन्नपालणे सुपुरिसाण जं होइ तं होउ ॥
27. कीरइ समुद्दतरणं पविसिज्जइ हुयवहम्मि पज्जलिए । श्रायामिज्जइ मरणं नस्थि दुलंघं सिरोहस्स ||
28.
एक्काइ नवरि नेहो पयासिनो तिहुयणम्मि जोन्हाए । जा भिज्जइ भी ससहरम्मि बढेइ बढ़ते ॥
29. झिज्जइ झीणम्मि सया वड्ढइ वढतयम्मि सविसेसं । सायंरससीरण छज्जइ जयम्मि पडिवन्नरिगव्वहणं ॥
30. पडिवन्नं जेण समं पुव्वणिनोएरण होइ जीवस्स । दूरट्ठियो न दूरे जह चंदो कुमुयसंडारणं ॥
10 ]
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
[ वज्जालग्ग में
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94