Book Title: Vajjalagga me Jivan Mulya
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
7. सुयगो न कुप्पड़ विजय ग्रह कुप्पड़ मंगुलं न चितेह | ग्रह चितेइ न जंप ग्रह जंपइ लज्जिरो होइ ॥
8. विट्ठा हरंति दुक्खं जंपंता देति सयल सोक्लाइं । एयं विहिरणा सुकयं सुयरणा जं निम्मिया भुवरणे ॥
9. न हसंति परं न युवंति प्रप्पयं पियसयाइ जंपति । एसो सुयणसहावो नमो नमो ताण पुरिसागं ॥
10. प्रकए वि कए वि पिए पियं कुणंता जयम्मि दीसंति । कविप्पिए विहु पिथं कुणंति ते बुल्लहा सुयरणा ॥
11. फरसं न भरगसि भणिम्रो वि हससि हसिऊण जंपसि पियाई । सज्जण तुम्भ सहावो न याणिमो कस्स सारिच्छो ।
4 ]
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
[ वज्जालग्ग में
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94