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• छतां भाववाही छे. आनुं विस्तृत विवेचन करवामां
आवे तो विस्तार रुचिवाळा जीवोने एनाथी अवश्य लाभ थया वगर न रहे.
___ आ अगाउ पण आनी आवृत्तिओ बहार पडीज छे तेम छतां ते खलास थई जतां पन्यास श्री कुन्दकुन्द विजयजी गणिनी प्रेरणाथी आ प्रकाशन थई रह्यं छे ते अनुमोदनीय छे. पन्यासजी ज्ञानना प्रचार द्वारा लोकोमा धर्म अने संस्कारनी प्राप्ति कराववानी रुचिवाळा तथा प्रभुभक्तिना सारा रसीया छे.
तेओनी प्रेरणाथी बीजा पण आवा ग्रंथो प्रकाशित थता रहे एज मंगल कामना
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. प्रस्तावना भय वगरनो एक मात्र वैराग्य ज छे जे जे भावथकी वधे जीवनमां वैराग्यनी भावना ते ते भाव महि सदा विहरवं राखी मनोकामना जे जे भावथकी न सिद्धिमळती ते भाव शा कामना जाणी एम सदा सुभाव करवा साची करो साधना आ संसारमा राग अने. द्वेषथी कोण परिचित नथी ? अज्ञानी जीवोने बाद करता लगभग जीवो आ जोडकाथी परिचित छे. आ जोडकामां जे द्वेष छे