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श्री वैराग्य शतक देखी मूर्ति अमृत झरती मुक्ति - दाता तमारी, प्रीते चन्द्र - प्रभ जिन मने आपजो सेव सारी,
९. श्री सुविधिनाथनी स्तुति. सेवा माटे सुर-नगरथी देवनो संघ आवे, भक्ति भावे सुरगिरिपरे स्नात्र पूजा रचावे; नाट्यारंगे नमन करीने पूर्ण आनन्द पावे, सेवा सारी सुविधि जिननी कोणने चित्त नावे.
१०. श्री शीतलनाथनी स्तुति. आधि व्याधि प्रमुख बहु ए तापथी तप्त प्राणी, शीळी छाया शीतल जिननी जाणीने हर्ष आणी; नित्ये सेवे मन वचनने कायथी पूर्ण भावे, कापी खंते दुरित गणने पूर्ण आनन्द पावे.
११. श्री श्रेयांसनाथनी स्तुति..
(शार्दूलविक्रीडित.) जे हेतु विण विश्वना दुःख हरे, न्हाया विना निर्मळा, जिते आन्तर शत्रुने स्वबळथी, द्वेषादिथी वेगळा; वाणी जे मधुरी वदे भवतरी गंभीर अर्थे भरी, ते श्रेयांस जिणिंदना चरणनी, चाहुं सदा चाकरी.
१२. वासुपूज्य स्वामिनी स्तुति. जे भेदाय न चक्रथी न असिथी, के इन्द्रना वज्रथी, एवा गाढ कुकर्म हे जिनपते, छेदाय छे आपथी; जे शान्ति नव थाय चन्दन थकी, ते शान्ति आपो मने,