Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Amrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
Publisher: Dhurandharsuri Samadhi Mandir
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श्री वैराग्य शतक
१३१ विणआप आ संसार कोण रक्षा कहो एथी करे ?
(९) कयारे प्रभो ! संसारकारण सर्वममता छोडीने, आज्ञा प्रमाणे आपनी मन तत्त्वज्ञाने जोडीने, रमीश आत्म विषे विभो ! निरपेक्ष वृत्ति थई सदा त्यजीश इच्छा मुक्तिनी पण सन्त थईने हुं कदा ?
(१०) तुज पूर्णशशिनी कान्ति सरखा कान्तगुण द्दढ दोरथी अतिचपल मुज मन वांदराने बांधीने बहु जोरथी, आज्ञारूपी अमृत रसोना पानमां प्रीति करी, पामीश परब्रो रति क्यारे विभावो विसरी
हुं हीनथी पण हीन पण तुम चरणसेवाने बळे.
आव्यो अहीं उंची हदे जे पूर्ण पुण्य थकी मले, तोपण हठीली पापी कामादिकतणी टोळी मने, अकार्यमा प्रेरे पराणे पीडती निर्दयपणे
(१२) कल्याणकारी देव ! तुम सम स्वामी मुज माथे छते, कल्याण कोण न संभवे जो विघ्न मुज नव आवते, पण मदन आदिक शत्रुओ पूंठे पडया छे माहरे, दूरे करू शुभ भावनाथी पापीओ पण नव मरे

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