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श्री वैराग्य शतक
संसाररूप समुद्र मां भमता अनादिकाळथी, हुं मार्नु के आप कदी मुज दृष्टिए आव्या नथी नहींतर नरकनी वेदना सीमा विनानी में प्रभु ! बहु दुःखथी जे भोगवी ते केम पामुं हुं विभु !
(१४) तलवार चक्र धनुष्यने अंकुशथी जे शोभतुं. वज्र प्रमुख शुभचिन्हथी शुभभाववल्ली रोपतुं, संसारतारक आपर्नु एवं चरणयुग निर्मलु, दुर्वार एवा मोह वैरीथी डरीने में श्रयं,
(१५) निःसीम करुणाधार छो, छो आप शरण पवित्र छो, सर्वज्ञ छो निर्दोष. छो ने सर्व जगना नाथ छो, 'हुं दीन छु हिम्मत रहित थै शरणे आव्यो आपने, आ कामरूपी भिल्लथी रक्षो मने रक्षो मने
(१६) विणआप आ जगमां नथी स्वामी समर्थ मळ्यो मने, दुष्कृत्यनो समुदाय मोटो जे प्रभु मारो हणे, शुं शत्रुओनुं चक्र जे बहु दुःखथी देखाय छे, विण चक्र वासुदेवना ते कोई रीत हणाय छे.
(१७) प्रभु ! देवनां पण देव छो वळी सत्य शंकर छो तमे,