Book Title: Vairagya Shatak Author(s): Amrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani Publisher: Dhurandharsuri Samadhi Mandir View full book textPage 171
________________ १४८ श्री वैराग्य शतक विनाश न करे ते पहेला चेती जा-बे त्रण दिवसनी मुसाफरीमां पण आत्मा दुःखी न थाय ते माटे अनेक सामग्री साथे लेनार तें लांबा काळनी परलोकनी मुसाफरी माटे भातु शुं लीधुं ते विचार अने मानव भव सुधारी ले. बाहिर दृष्टि देखतां, बाहिर मन धावे, अंतर दृष्टि देखतां, अक्षय पद पावे.Page Navigation
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