Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Amrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
Publisher: Dhurandharsuri Samadhi Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 151
________________ शतक १२८ __श्री वैराग्य शतक काळ सुधी चौदमा गुणस्थानकनो अनुभव करी मोक्षमां जईशुं, अनंत अव्याबाध अक्षय सुखने मेळवीशुं, सिद्ध स्वभावने पामीशुं, कृतकृत्य बनी ज्योतिमां ज्योति भेळवी दईशं. एवो समय क्यारे आवे के अमारी आ सर्व भावना सफळ थाय. हे भव्य आत्माओ ! आवी भावना हमेशा हृदयमां भावो मनमां विचारो, चित्तमां चिंतवो, दिनानुदिन वर्णवेल भावना प्रमाणे उत्तरोत्तर गुणवृद्धि करतां सिद्ध-बुद्ध ने मुक्त बनो एज भावना. ___श्रीमान् नेमिसूरीशनी, कृपादृष्टिथी आज; आ वैराग्य शतक रच्यु, स्वपर श्रेयने काज ॥१०॥ ॥ इति वैराग्यशतकं सम्पूर्णम् ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172