Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Amrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
Publisher: Dhurandharsuri Samadhi Mandir

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Page 141
________________ ११८ श्री वैराग्य शतक के 'काले धर्म करीशुं' काल कोणे जोई छे. धर्मराजा जेवाने पण कालनी खबर नो'ती तो तारूं शुं गजुं छे. धर्मराजा युधिष्ठिर पासे एक ब्राह्मण दान लेवा आव्यो हतो. राजाए कडं के काले आवजे. भीमसेनने खबर पडी, तेणे विजयघंट वगाड्यो. युधिष्ठिरे बोलावीने पूछ्युं के भाई ! आपणे कोनो विजय कर्यो छे के आ विजय घंट वगाडयो छे ! भीमे हसीने उत्तर वाळ्यो के आपे मृत्युनो चोवीश कलाक माटे विजय कर्यो छे माटे, राजाए पूछयु :- कई रीते ? भीमे कह्यु - आपे आ ब्राह्मणने काले दान लेवा आववानुं कर्तुं छे. तेथी आप काल सुधी अवश्य जीववाना छो, नहिं तो एक क्षणनी पण मुदत केम अपाय. युधिष्ठिरे तुरतज ब्राह्मणने दान आपी विदाय कर्यो ने समज्यां हे चेतन ! ज्यारे धर्मराजा जेवा मुदत आपवा समर्थ न हतां. तो ताराथी धर्म करवामां घडीनो पण विलंब केम कराय ? जे दिवस के जे रात्रि तारा जीवनमांथी जाय छे ते पाछी आवती नथी. जे समय गयो ए गयो ! तारों अपूर्व अवसर एमने एम चाल्यो जाय छे. ए निष्फळ न गुमाव, ऊंघमांथी उठ ! तारा मनने ठेकाणे लाव तारा चित्तने जागृत कर, जेटलुं सधाय तेटलुं साधी ले, आ जीवन-आ वैभवो, आ स्त्री परिवारनो प्रेम-ए सर्व तने नवा नवा लागे छे. पण ए घासनी सळी पर रहेला पाणीना बिंदु जेवा छे. तेने सुकातां वार नहिं लागे, ए खरी जशे ने नाश पामशे. ए सर्व स्वप्न लीला छे. आंख ऊघडया पछी कांई नहि जणाय. आ

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