Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Amrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
Publisher: Dhurandharsuri Samadhi Mandir
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श्री वैराग्य शतक
११७ कलाक शरीरनी सेवामां काढे छे. ए दुबळु न पडे मादुं न पडे. मरी न जाय, ए माटे तने रातदिवस चिंता रहे छे. एथी डरतो तुं मोटा मोटा महेलोमां भराय छे, दवा खाय छे, रसायण, वाजीकरण, पौष्टिकआहार, मोतिअभ्रक, लोह, ताम्र, सुवर्ण वगैरेनी भस्मो वापरे छे, पण बधुं शा माटे ! गमे तेम करीश, गमे तेटलो मरणथी डरीश, मरण न आवे, माटे काळ पासे कालावाला करीश तो पण ए तने नहिं छोडे तारे काळनी साथे कांइ सगपण नथी, ए कांई तारो मित्र के सगो नथी थतो. एनाथी बचवाना कोई गुप्त स्थान नथी सुरंगोथी खोदायेला भोयराओ नथी के ज्यां तुं भराई जइश तो त्यां ए नहि आवी शके. तुं गमे त्यां होइश तो पण त्यांथी ए तने लई जशे. तो शा माटे पुदगलानन्दी बन्यो छे. शरीरने मारूं मारूं करी एनी पाछळज शा माटे मरी फीटे छे. एज शरीरथी एवा प्रयत्नो कर. जेथी तुं अजर-अमर बनी जाय, तारे फरी जन्म-मरण न करवा पडे. शरीर ए साधन छे, तारूं श्रेय करवाना काममां आवे तोज ए कामनुं जे साधनथी साध्य-सिद्धि न थाय ए साधन पण शुं कामर्नु ? माटे धर्म पहेला ने पछी शरीर, धर्ममां-आत्महितमां खामी न पहोंचे एटली ज शरीरनी संभाळ ले. तारूं आयुष्य कयारे पूरूं थशे एनी तने खबर नथी, मरण क्यारे आवशे. एनुं तने ज्ञान नथी, कोई ज्ञानी पासे तें नक्की नथी कर्यु के,तुं आटला वर्ष जीववानोज छे, जोतजोतामां चाल्यो जईश, आवी स्थितिमां एम केम कहे छे

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