Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Amrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
Publisher: Dhurandharsuri Samadhi Mandir

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Page 146
________________ १२३ श्री वैराग्य शतक त्रीजा श्लोकमां मुनिधर्मपाप्तिनी भावना अमारो आत्म-वैराग्य रंगे रंगाईने-साचा वैराग्य रसथी रसिक थईने 'क्यारे दीक्षा मळे-क्यारे दीक्षा मळे' एवी तीव्र . भावना भावशे, दीक्षानी उत्कट इच्छा जागशे, अमारा मातापिता, सगां-संबंधी अमने सहमत थशे. अमारी इच्छाने वधावी लेशे. अमारी भावनानुं अनुमोदन करशे, दीक्षानो अजोड वरघोडो चडावी वाजते-गाजते गुरु महाराज पासे जईशं. गुरु महाराजने अमारो संसारथी उद्धार करवा विनवीशं. दीक्षा देवा विनंति करीशुं, चतुर्विध संघ समक्ष गुरु महाराज अमने दीक्षाविधि करावी साधुवेश आपशे. रजोहरण-धर्मध्वज, ओघो लईने अमे नाची\-कूदीशुं. अहोभाग्य समजीशं. ए अमारी अमूल्य घडी हशे. अपूर्व समय हशे, अमने अनन्य उल्लास हशे. दीक्षा लइने गुरुनिश्राए विचरशुं, गुरु आज्ञाए रहीशुं, क्षण पण प्रमाद नहि करीए, गुरुमहाराजनी सेवामां-मुनिओना विनय वैयावच्चमां-भक्तिमां जरीपण आळस नहिं राखीए स्वाध्यायमां, भणवामां. शास्त्र शिखवामां उद्यमी बनीशं. गुरु महाराजनी कृपाथी सर्व शास्त्रनुं ज्ञान मेळवीशुं, तेमना प्रसादथी श्रुत ज्ञाननो पार पामीशुं, सिद्धांतनी चावीओ मेळवीशुं, उत्सर्ग अने अपवादने जाणीशुं आगमो भणीशुं ने भणावीशुं पाट पर बेसी व्याख्यान आपीशुं, सभा गजावीरों, मेघ जेवी गर्जनाथी-मधुर स्वरथी जनताना चित्तनुं आकर्षण

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