Book Title: Vairagya Shatak
Author(s): Amrutsuri, Dhurandharvijay, Kundakundvijay Gani
Publisher: Dhurandharsuri Samadhi Mandir
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श्री वैराग्य शतक करीशं. समस्त लोकोना मनमां वीतराग भगवानना वचनो ठसावीशुं व्रत-नियमोमां जनताने जोडीशुं प्रतिबोध करी संयम आपीशं, अनेक जीवोने दीक्षा आपी परिवार वधारीशं, गुरु महाराजश्रीनी पट्टपरंपराने अखंड अने दीपती करीशं. शेठे रोहिणी स्त्रीने वखाणीने सर्व अधिकार सोप्या हतां तेम अमने गुरु महाराज पण वखानी सर्व सत्ता समर्पण करशे, अमे तेओश्रीनो बोजो हाथीनी माफक वहन करीशुं तेओश्रीनो भार संभाळी लईशं. गच्छने साचवी लईशं, तेओश्रीने चिंताथी मुक्त करीशं, ए प्रमाणे सिंहनी जेम संयम-चारित्र-दीक्षा लई सिंहनी जेम पाळीशुं ने आत्माने उज्जवळ बनावीशं.
चोथा श्लोकमां समतानी भावना छे.
साध धर्ममां प्रगति करी अमे अमारा आत्माने समताभाव- शिक्षण आपीशु राग-द्वेषने निर्मूळ करवा प्रयत्न करीशुं, मोटा नगरमां के निर्जन जंगलमां, देवभवन जेवा विशाळ-मनोहर महेलमां के नानीशी झुपडीमां अमने भेदभाव नहि रहे, प्रीति के अप्रीति नहि थाय. स्त्रीमां रूमझुम-रूमझुम चालती ललित ललनामां के शबमां-मरी गयेल मृतकमां अमने समानता रहेशे, स्त्रीमां मोह नहिं थाय ने मृतकमां घृणा नहिं थाय, सर्पमां-झेरी नागमां अने मणिनी माळामां

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