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श्री वैराग्य शतक छे. आ जन्मनी स्त्री अन्य जन्ममां माता बने छे. एक भवनो बाप ए बीजा भवमां पुत्र थाय छे ने पुत्र ए अन्य भवमां पिता थाय छे. अरे ! जुदा जुदा भव ने जन्मनी अपेक्षा तो दूर रही पण एक ज जन्ममां आ जीव बीजा जीव साथे जुदा जुदा अनेक सम्बन्धो-सगपणथी जोडाय छे, कर्मनी स्थिति महा विचित्र छे, कुबेरसेन एक जन्ममा अढार संबंधे बंधायो हतो, ते वात आ प्रमाणे छे. मथुरा नगरीमां कुबेरसेना नामे वेश्या हती, तेणे एक वखत युगलीया (जोडकां) ने जन्म आप्यो. बन्नेनी आंगळीमां वींटी पहेरावीने यमुना नदीमां मूकी दीधां, सौरीपुर पासे तणातां तणातां आव्या त्यारे बे मित्रोए बन्नेने काढ्या. पाळीने मोटा कर्यां, कर्मयोगे ते बन्ने कुबेरदत्त ने कुबेरदत्ता भाई-बहेन एक बीजा जोडे परण्या, बेनने पोतानो स्वामी पोतानो बन्धु छे ए वातनी जाण थतां वैराग्य आव्यो. तेणे दीक्षा लीधी ने साध्वी बनी, कुबेरदत्त एकदा व्यापारने कारणे मथुरा गयो. पोतानी माता-वेश्यानी साथे विलास करतां त्यां एक बाळक थयुं, पेली साध्वीने अवधिज्ञानथी आ वातनी खबर पडी. तेणे आवीने ते बधांने आ हकीकतथी वाकेफ कर्या, कुबेरदत्ते दीक्षा लीधी कुबेरसेना वेश्या श्राविका बनी. संसारनी आवी विचित्रता छे माटे हे चेतन ! संबंधोनी जंजाळमां न फसा ते छोडी ज्ञानीना साचासंबंधो बांधी मुक्त था. (७३)