Book Title: Uttaradhyayan Sutram
Author(s): Hiralal Hansraj
Publisher: Hiralal Hansraj

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Page 7
________________ • श्रीजैनसिद्धान्त-स्वाध्यायमाला तत्थ से चिट्ठमाणस्स, उवसग्गाभिधारए । संकाभीओ न गच्छेजा, उहित्ता अन्नमासणं ॥ २१ ॥ उच्चावयाहिं सेनाहिं, तवस्सी भिक्खू थामवं । नाइवेलं विहम्मेजा, पावदिट्ठी विहम्मई ॥ २२ ॥ पइरिक्कुवस्सयं लधुं, कल्लाणमदुवा पावयं । किमेगराइं करिस्सइ, एवं तत्थडहियासए ।। २३ ॥ अक्कोसेजा परे भिक्खुं, न तेसि पडिसंजले । सरिसो होइ बालाणं, तम्हा भिक्खू न संजले ॥ २४ ॥ सोचाणं फरुसा भासा, दारुणा गामकण्टगा । तुसिणीओ उवेहेज्जा, न ताओ मणसीकरे ॥ २५ ॥ हओ न संजले भिक्खू, मणंपि न पओसए। तितिक्खं परमं नच्चा, भिक्खू धम्मं समायरे ॥ २६ ॥ समणं संजयं दंतं, हणिज्जा कोइ कत्थई । नत्थि जीवस्स नासुत्ति, एवं पेहेज संजए ॥ २७ ॥ दुक्करं खलु भो निचं, अणगारस्स भिक्खुणो। सव्वं से जाइयं होइ, नत्थि किंचि अजाइयं ॥ २८ ॥ गोयरग्गपविट्ठस्स, पाणी नो सुप्पसारए । सुओ अगारवासुत्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ २९ ॥ परेसु घासमेसेंजा, भोयणे परिणिट्टिए। लद्धे पिण्डे अलद्धे वा, नाणुतप्पेज पंडिए ॥ ३० ॥ अजेवाहं न लब्भामि, अवि लाभो सुए सिया। जो एवं पडिसंचिक्खे, अलाभो न तज्जए ॥ ३१ ॥ नच्चा उप्पइयं दुक्खं, वेयणाए दुहट्ठिए। अदीणो थावए पन्नं, पुट्ठो तत्थ हियासए ॥ ३२ ॥ तेइच्छं नाभिनंदेजा संचिक्खत्तगवेसए । एवं खु तस्स सामण्णं, जं न कुज्जा न कारवे ॥ ३३॥ अचेलगस्स लूहस्स, संजयस्स तवस्सिणो। तणेसु सयमाणस्स, हुजा गायविराहणा ॥ ३४ ॥ आयवस्स निवाएण, अउला हवइ वेयणा । एवं नच्चा न सेवंति, तंतुजं तणतजिया ॥ ३५ ॥ किलिन्नगाए मेहावी, पंकेण व रएण वा । प्रिंसु वा परियावेण, सायं नो परिदेवए ॥ ३६ ॥ वेएज निजरापेही, आरियं धम्मणुत्तरं । जाव सरीरभेउत्ति, जल्लं कारण धारए ॥ ३७ ॥ अभिवायणमब्भुट्ठाणं, सामी कुज्जा निमंतणं । जे ताइं पडिसेवन्ति, न तेसिं पीहए मुणी ॥ ३८ ॥ अणुक्कसाई अप्पिच्छे, अनाएसी अलोलुए । रसेसु नाणुगिज्झेजा, नाणुतप्पेज्ज पन्नवं ॥ ३९ ॥ से नूणं मए पुव्वं, कम्माऽणाणफला कडा । जेणाहं नाभिजाणामि, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४० ॥ अह पच्छा उइजन्ति, कम्माऽणाणफला कडा । एवमस्सासि अप्पाणं, नच्चा कम्मविवागयं ॥४१॥ निरट्ठगम्मि विरओ, मेहुणाओ सुसंवुडो। जो सक्खं नाभिजाणामि, धम्मं कल्लाणपावगं ॥ ४२ ॥ तवोवहाणमादाय, पडिमं पडिवजओ। एवं पि विहरओ मे, छउमं न नियट्टई ॥ ४३ ॥ : नत्थि नूणं परे लोए, इड्ढी वावि तवस्सिणो। अदुवा वंचिओमित्ति, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ ४४ ॥ अभू जिणा अस्थि जिणा, अदुवावि भविस्सई । मुसं ते एवमाहंसु, इइ भिक्खू न चिंतए ॥ ४५ ॥ एए परीसहा सव्वे, कासवेण निवेइया । जे भिक्खू न विहम्मेज्जा, पुट्ठो केणइ कण्हुई ॥ ४६ ॥ त्ति बेमि॥ इअ दुइ परिसहज्झयणं समत्तं ॥२॥

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