Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 12
________________ [11] 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 किया। अतः हमारा संघ पूज्य गुरु भगवन्तों का एवं धर्मप्रेमी, सुश्रावक श्रीमान् श्रीकांतजी गोलछा का हृदय से आभार व्यक्त करता है। तत्पश्चात् मैंने इसका अवलोकन किया। - इसके अनुवाद में भी संघ द्वारा प्रकाशित भगवती सूत्र के अनुवाद (मूल पाठ, कठिन शब्दार्थ, भावार्थ एवं विवेचन) की शैली का अनुसरण किया गया है। यद्यपि इस आगम के अनुवाद में पूर्ण सतर्कता एवं सावधानी रखने के बावजूद विद्वान् पाठक बन्धुओं से निवेदन है कि जहाँ कहीं भी कोई त्रुटि, अशुद्धि आदि ध्यान में आवे वह हमें सूचित करने की कृपा करावें। हम उनका आभार मानेंगे और अगली प्रकाशित होने वाली प्रति में उन्हें संशोधित करने का ध्यान रखेंगे। इसके प्रकाशन के अर्थ सहयोगी एक गुप्त साधर्मी बन्धु हैं। आप स्वयं का नाम देना तो दूर अपने गांव का नाम देना भी पसन्द नहीं करते। आप संघ द्वारा प्रकाशित होने वाले अन्य प्रकाशन जैसे तेतली-पुत्र, बड़ी साधु वंदना, स्वाध्याय माला, अंतगडदसा सूत्र में भी सहयोग दे चुके हैं। इसके अलावा कितनी ही बार सम्यग्दर्शन अर्द्ध मूल्य योजना में सहकार देकर. अनेक साधर्मी बन्धुओं को सम्यग्दर्शन मासिक पत्र का अर्द्ध मूल्य में ग्राहक बनने में सहयोगी बने हैं। दो साल पूर्व संघ द्वारा लोंकाशाह मत समर्थन, जिनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा, मुखवस्त्रिका सिद्धि एवं विद्युत बादर तेउकाय है प्रकाशित हुई तो आपने इन चार पुस्तकों के सेट को अपनी ओर से लगभग पांच सौ संघों को फ्री भिजवाये। वर्तमान में आपके ही अर्थ सहयोग से संघ द्वारा प्रकाशित २२ आगमों का सेट अर्द्ध मूल्य में लगभग २५० (दो सौ पचास) श्री संघों को भिजवाये जा चुके हैं। इस प्रकार आप एकदम मूक अर्थसहयोगी हैं। आप संघ के प्रत्येक प्रकाशन में मुक्त हस्त से सहयोग देने के लिये तत्पर रहते हैं। ऐसे उदारमना गुप्त अर्थ सहयोगी पर संघ को गौरव है। संघ आपका हृदय से आभार मानता है। आप चिरायु रहें। आपकी यह शुभ भावना उत्तरोत्तर वृद्धिंगत रहे। इसी मंगल कामना के साथ। . ... जैसा कि पाठक बन्धुओं को मालूम ही है कि वर्तमान में कागज एवं मुद्रण सामग्री के मूल्य में काफी वृद्धि हो चुकी है। फिर भी गुप्त साधर्मी बन्धु के आर्थिक सहयोग से इसका मूल्य मात्र . रु. ४०) चालीस रुपया ही रखा गया है जो कि वर्तमान् परिपेक्ष्य में ज्यादा नहीं है। पाठक बन्धु इसका अधिक से अधिक उपयोग करेंगे। इसी शुभ भावना के साथ! , ___ ब्यावर (राज.) संघ सेवक दिनांक: २५-८-२००५ नेमीचन्द बांठिया अ. भा. सु. जैन सं. रक्षक संघ, जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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