Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah
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| गि० संपट विषयनो स० घनायसहित स. धुरप्रमादर रसस्वादनोसंपट सा० पोतानागयेषएाहार २३ मा प्रारंलयकी निघरत्यो अ३५ | गिधिपनसेय सढेपमत्ते। रसतोकएसायगवेसएयगुण॥२३॥ आरंमानअविर नहीं खु. सर्व जीवरहिन सा अपाविमासा कारजनो ए० एवेपापव्यापारेकरी स० सहितए नी नीलसेस्याने पूर्णे परिणम
। खुट्टोसाहस्सिनरो । करणहारनर एयजोगसमानुत्तो । जे जीव नीलसंतुपरिणाम। २७हवेकापोतसश्यानोसकणकेडेचं वाकूबोसेवांकाकार निनियम मायासहिन अापपादोषने टांके स. कपटेकरीसहित २५॥ वक्तवक्कसमायारे । जनोकरणहार निवकिल्ले अफचए। पसिञ्चस्सलवहिए । मिमिय्याइरि अ० अनार्य २५ न० मनवचनकायायी परजीवनडसेमाथे चाटवू बेत्तेवाने चोरीनोकरपाहारमअनेरीसंपदा मिबदिवि अपारिए॥ २५॥ चप्पसगववाश्य । वचननोचोपणहार तेएण्यावियमवरि ।देषीनपांसे ए. एवेन्यापारेकरी , काकापोतलेल्याने तुः पूरणे, प० परिणमे २६ हवेलेजोसेस्या नि मनक्चनकायाएंकरी नीचावर्तिमानर एयजोगसमाजत्तो। कानुलेसंतुपरिणामी ॥२६॥ नो सन्कए केजे नियाचित्तीअचवलो हिनभन्न अ० मायारहिन अ. कुतूहस रहित विनय करीने विविनय करवानेविषेद रंडीनोदमपहार जो० स्वाध्यायादिकना व्यापार सहित ५१५ अमाश् अकुतूहले। विपीयविपाएंदते॥ जोगवंनुवहाएवं ॥ २७ ॥ २३
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