Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
889]
ना केवलज्ञान अने केवसदरसनतेहज स सहित सनसंज्ञाने अ० अनुसरूष पाम्याडे न नुपमा जेरूषनी नयी ६७ अ३६ | नागदंसपासन्निया ॥ऋयिवाने ज्ञानदर-अतसंसहसंपत्ता .. जुवमाजस्सनचिन॥६॥ सो खोकना एकदेसवित्मागनेविषे तेसर्व ना केवलज्ञानकेवपदरसन तेहज संज्ञाचे सं० संसार पार पाम्या नि संसार सोएगदेसतेसवे। नाएदसएसन्निया ॥ जेहने संसारपारनिनिया। सिद्धि
द्या.जेणें सि मोक रूपपी प्रधानगति प पता ६८ हवे। सं संसारमाबेहे स्वित्त्याने जेसंसारीजीव कु० बेप्रकार वि तेजीवकह्याती वरगगया ॥६८॥ संसारीक जीवनो स्वरूपकहने संसारबाजेजीवा। विहातेवियाहिया ।रयंकरें| तसअमेयावर निश्चै या यावर जीवति त्रिकप्रकारे ते त्रसपावरमाहे पुः पृथवी आ. अपकायनाजीव तस्तेमजवनस्प तस्साययावराचेव । यावरातिविहातहिं ॥ ६॥ ६९ पुढविआनजीवाय। तहेवयव तीनाजीव वनस्पती तेयावरति त्रएाप्रकारें ने नेहना बेलदस सालसमुजनेकहतायिका ७ प हवेऽव्ययी पुन्बेशप्रकारेषु एस्स। इच्चेतेथावरातिविहा । तेसिलेएसोहमे ॥ ७० ॥ पृथवीनात्मेदकहेले विहापुढ पृथवीनाजीव सु.सूक्षमबादरनिम प० पर्जाप्ता अपर्जाप्ता ए. एम एफु बेप्रकारेकया बक्षी तीरथंकरें|| ४४४ वीजीवाड। सुजमा बायरातहा । पद्यत्तमपद्यत्ता। एवमेएऊहापुगो ।। ३१ ॥
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447