Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

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Page 427
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६५ चनपद पगनाधए काकायथिनिज- जखचर जीवनीअंतर्मुशर्त ज० जघन्य 33 प्र०अनंताकासनोनन्नत्कृष्टो अं• अंतर्मुझर्न ज. जघ २६ कायविजयराए । अंतोमुऊत्तंजहन्निया ॥33॥ अएंतकासमुक्कोसं। अंतोमुत्तंजानि न्य वि वोथिके सपोनानीजलचरनी ज जलचर जीवने जप्तचरपएं पांमवानो एनसोनिरुप ७ ८ हवे तिर्यचपंचंडी ए०एवणी या। विजदंमिसएकाए। जसयराएंतुअंतरे ॥८॥ जसचर लावयी कहेले एएसिवा .. गंगंधयी रसयी फरसयी सं संस्थान आदिदेश वि० लेद सम्हजारोगमेजए ३९ हवेजपचरडव्ययाकेजेचन न्ननुचेव। गंपनरसफासन। संगपादेसवावि। विहागाइंसहस्ससो च नप्प। नेश्नपदाप परिसर्पसु जपरिसर्प . थलचर १ अने परिसर्प ए वेप्रकारे यसरर नए चनपद च्याप्रकारे तं नेमुझनेकहतायिकासन यायप्रिसप्पा । विहायलयरालवे। चनुप्पय चनबिहा। नमेकिनियनसुए। सांत्नल्यो१८० ए० एकरचुरोजेने बेखुरचे जेने पूरणेगं हायी प्रमुषगंगीपद स नषसहित पगढ़ जेने हन्घोमादिकने एकरबरी गोल ग टायीमम १८०॥ एगस्करापुस्कराचेव। गंमीपया सगप्पया। हयमाश्गोमा। गयमाइसीह घर्गमीपदसील सिंहकूतरा सहित लूएक मुजपरिसर्प अनेबीजाचरपरिसर्पप० परीसर्प पुन्चेप्रकारे नए गो गोहगरोलीप्रमुषएलनप||५६५ माश्यो।८१॥ ८१ लूनरगपरिसप्पा । परिसप्पाविहालवे। गोहाइ रिसर्प || For Private and Personal Use Only

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