Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

View full book text
Previous | Next

Page 429
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie जअं अंनमुन जघन्य ७ बिन्जायके सपोतानीपिसचरनीकाएक थलचरने एतप्तुं आनसंपफेहवेपसचरचरनालेद ||अ-३६ ४६७/ अंतोमुत्तंजहसिया ॥७॥ विजढंमिसएकाए। सयराएंतुअंतरं । लावयी कहे एक पेषाएसि वएपिीगयी रसयी फरसयी ८८ संस्बानयी आदिदेश दिलेदसहस्रगमेयाए हवेषेचरइव्ययीक बन्ननचेव। गंधनरसफास। ८॥ संगएादेसनेवावि । विहागासहस्ससो। हेजे च० चमाचीमप्रमुषसोन्चमीचमादि सोमपंथी तबीजापंषीस माबमानुढाकफंदीयु होएतेची पांघर्षपषीमनुष्य विज्पांघसदाए मोकसारहे ने चम्मेसोमपरकीय। तश्यासमुग्गपस्किया ॥७९॥षेत्रबाहिरप्पविययपस्कीयबोपचा। वितता पमनुष्यत्रबाहिरजापावाएपंषी च्यारप्रकारेंहदे षेच त्रयीकहेरेखोल लोकनाएकदेस। न० सघसेलोकमांहेनयी. . ए एकह्या पंथी पस्किएोयचजबिहा। सोएगदेसतेसवे। वित्नागेनेविषेसघसा नसबच्चवियाहिया ॥ एत्तो पनी कालनो विचार तेच ते पंधीना कहतुं च० च्यारप्रकारे १००हवे खेचरकासयी कहेले सं० एपंधी उता आश्री अ. अनादिकाल कालविलागंतु । तेसिवोबंचनुछिह ॥ १९॥ ॥ संतश्पप्पाश्या । अपद्य अनंताचे अंतरहित वियिति आश्री आदि सहितः स.अंतसाहितपण्डे १९१ ६१ वसियाविया ॥ विश्पच्चसाश्या। सपद्यवसियाविय ॥१९॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447