Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

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Page 435
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न. इ० ए| मकारें वैमानिक कह्या म घोप्रकारेंए• एत्र्यादिदेशने देवताका १७ हवेदेवतापेथी | लो० सोकना एकवि लागने विषे ते समता ४७३ इश्माणियाए । 'एरोगहाएवमायनं ॥ २९९ ॥ कहे लोगस्स एगदेसंमि । तेस ए० कयापी हवे कालविचार ० तेदेवनानी के कहसुं च० च्यारभकारें हवेदेवताकालयी संनेदेवताताच्या तेसिबोच्चचनुविहं ॥ २१६ ॥ कहेने संतझपप्पा १९ सा०जारासा For Private and Personal Use Only त्र्य. ३६ देवता का परिकित्तिया । एत्तोकास विभागंतु । श्री सतासहित म० अनादि बेडेकोपानथी कि वितियादिसहित | श्या । प्रपद्यवसियाविय। विश्पमुच्चसाश्या । सपद्यवसियाविय ॥ २१९ ॥ साहियंसागर सोगरएक न• नत्कृष्ट मानुषानी यिनि लो. लवनपति बसेंडादिकनी ज० अघन्यस्थिति दस हजार वर २२० प० पस्योप 1 एकं । नक्कोसेांक्लिवे । लोमेद्याएं जहन्त्रेां । दसवाससस्सिया ॥ २२० ॥ पसिने म दो० बेनपाकाश्क न नृत्कष्टिबि कही म० असुरकुमारें न बरजीने बीजात्र्मसुरकुमार देवतादिकलवनपतिनी यिनि जधन्यदसहे | वमदोनणा । नक्कोसेएाविचाहिया । सुरिंदषचित्तां । जार २१ प० पस्योपमएकनी ० उत्कृष्टिथिति होए व्यं व्यंतरनी ज० जघन्य द० दशहजारवरसनी २२ १३१ पसिने॒वममेगंतु । जोसेलिवे। व्यंतराजहन्नेां । दसवाससहस्सिया ॥ २२ ॥ जहन्नादससहस्ससा ॥ ६५‍

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