Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

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Page 430
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie प्र.३६ | प. पक्ष्योपमनो लाग . अ असंध्यातमो नागए प्रा० अानुषानी स्थिति परवेचरनी अं अंतरभुत ज. जघन्य पसिनुवमस्सलागो । असंवेधश्मोमवे । वाचविश्वहयराएं। अंतोमुजतंजहनिया ॥१२॥ अंक त्र्यसंध्यातमोत्नाग पपल्योपमनोलागत नद्कृष्टो साल एतहासुपरअपको पुः पृथक्त्व अंअंतर्मुर्तिज जपन्य असंवेद्यलागोपलियसं । नक्कोसेएाजसाहिन । पुछकोमीपत्तेएं । अंतोमुत्तंजहानिया | का कायथिति रव० स्वेचरनी अंन्यांतरुपमे पंथीनवपांमवार्नु ३० अागले काल कासअननोन उत्क्रष्ट अंतरमुर्तज जपन्य कायविश्वहयराएं । अंतरंतेसिमलवे । कहरूं तो कासमांतर्मुक्कोसं। अंतोमुत्तंजहालय। हवे षेचरयी ए एपंपीना लेदवायी गंधयी रसयी फरसयी सं संस्थानना आदिदेश विश्लेदहजार हवे मनुष्यऽव्ययी केले कहेगे १९७ एएसिवन्ननचेव। गधनरसफासन । संगएादेसनवावि । विहाएाइंसहस्ससो॥१९॥ मन् मनुष्यदेत्नेदरे तं ते मुजनेकहत्तायकासुःसांत्मसो स-एक समूर्बिममनुष्य ग. बीजागर्ल जमनुष्य तळ नेम मएयाविहलेयान । तमेकित्तयन्सए । समुचिमायमएया। गज्ञवक्वंतियातहा ॥१९६॥ गगनेजमनुष्यदे जेजेम ति नामकारे कया मकरसपादिकजिहां करयूं नयीत अकमलमानामनुष्यककरमणादिकजांकरखोगे ४५८ गतवकंतियाजेन । तिविहातेवियाहिया । अकम्मकम्मलूयाध अंतरदीवेगातेही १९७" || For Private and Personal Use Only

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