Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

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Page 431
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यापुत्रमवीसई । स. समूर्तिमनुष्या ए० एमज एगर्लजनी परें संखाएकम्मसोतेसिं ले लेद होए की हवे मनुष्यस्वेनथी। . लेनहोत्र्याहि । कहे सं• मनुष्याच्या १९०९० संतश्पप्पएयाश्या । यपद्यव प० पष्योपम ति त्रय ० त्रांतर न. प पनरलेद कर्मभूमीना मनुष्यति त्रीसम्मकर्मत्लूमिनामनुष्य अच्ठावीस कहतां ५६ अंतरीपना मनुष्य संग संख्या अनुक्रमेते तेमनु ३६ ४६) पन्नरसतीसति विहा । व्यनी इ० एपोंमकारें कि कही ८ ।। इइएसावियाहिया ॥ १७८ ॥ समुबिमाए एवमेव । सो. खोकना एक देस विभागने विषे ते ते मनुष्य सघसाए समूहिमनुष्यवता माश्री लोगस्सएगदेसंमि । सवेवियाहियां ॥ १९९॥ हितबे स० [प्रादिसहितसहित सियाविय । विश्वमुञ्चसाश्या । सपबवसियाविय ॥ २००॥ पषिने॒वमानु॑ति॒न्ननु॑ । नृत्कृष्टिकही ० पानी स्थिति मनुष्यनी १ प० पस्योपम विन्त्रप |कोसेएगवियाहिं । श्रावि मया । तमुतं जहन्निया ॥ १ ॥ पविनुवमातिनि ॐ० नुवष्टि विकही पु० पृथक बेथी मांडी ( सुधी सात लवखगे एकेकी पूर्वकोनीनो मानुषी होए आसे लबे त्रयपयनयान ४६८१४ d। नकोसेएावियाहिन । पुचकोनीपुत्तेषां ॥ त्र्यंतमुत्तजहलियाँ ॥ २ ॥ वि०स्वितित्र्याश्री २०० ज अंतर्मुर्त जघन्य ४० For Private and Personal Use Only

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