Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah
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वरस अ.३६
5. लिवयिति कार्यथिति मानुषानी स्विति श्राश्री स० त्र्यादिसहित बे मानुषु पूरुं याए तिवारे नि भए। सहस्त्र ४५५ विपचसाश्या । सपद्यवसियाविय ॥ २२ ॥ तसहित पाढे २२ तिन्नेवसहस्साएं | वासा नु० नुत्क्रष्टिहोए • मानुषानी स्थिति या चानुकायनी अंतर्मुर्त ज० जघन्य २३ • संख्याताकानीन्छ
कोसियालवे । नविवानां । तोमुझतं जहनिया ॥ २३ ॥ असंषकामुकोसा तूकृष्टि अंतमुर्त ज० जघन्य का० काय थितिवा० वानुकायनी ते.तेवानुकायनीकाया अ० मामूकतो की अन् स्वितितोमुफत्तजहम्निया । कायविवानां । तंकायंत्र्प्रमुच ॥ २४ ॥ २७ अ | नंतकालनं ० उत्कष्टोत्र्यांतरूपा त्र्यंत फूर्त ज० जपन्यत्र्यांत वि० बांदेयके स० पोतानीवालका जी० जीवने वान कायपांमवा तकासमुकोस । तोमुत्तं जहलयं । विजढंमिसएकाए । यनी वानुजीवाएात्र्तरं ॥ एन आंत हवेत्मावथी के बेएक एकायना दवन वर्षाप की निश्वगंध धीरसपी फान्फरस संग संस्थानना दीप २५ ॥ पफे २५ एएसिवन्नन चैव । धनुरसासनं । की संगएादेसने॒वाव । वि० [लेदना स० सहस्र होए २६ Joमोटात सजीव बेडियादिकने च च्यारप्रकारे का बे. बेंडी ते. तेंडी विहाणासहस्ससी ॥ २६ ॥ नरासात साजेवना चनुविहाते पकित्तिया । बेइंद्रियते दि
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