Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

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Page 423
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६ ए. ए चनरेंडीजीवना लेदध वएयिकीगंधयीररसपीफरसयीसं संस्थाननात्नेदपएा वि- नेदहनार होए ५५. | एएसिवन्ननेचेव। गंधरसफासजे । संगगादेसनेवापि । विहाएाइंसहस्ससो ॥१५५॥ पं. पंचेंडीजे जीव च० च्यारप्रकारे लेकह्या नेनारकीतिर्यंच म मनुष्य देवताया कह्या हवे नारकीदव्यपी कहेले ५६ पंचिंदिया जेजीवा। चनविहातेवियाहिया । नेरश्यतिरिस्कायामएफयादेवायत्राहिया॥५६॥ ने नारकी सात प्रकारे पुरत्नपत्मादिकप्रविवि सातने विषेर रत्नप्रला १ स० सकरप्रसार वा०वासुकप्रला३ आरु कही ५७ । नेरझ्यासत्तविहा । पुढविसत्तसुत्लवे । रयपात्लासकरालावा । सुयालायमाहिया ॥५७ ।। पं० पंक प्रत्माघधूळ धूम्रप्रत्ना५ त० तमाला न तमतमाउ एपृयविए0प्रकारेनारकीसच मकारें कह्याहवेनारकीक्षेत्रयीके पंकालाधूमाना । तमातमतमातहा। श्श्नेरश्याएए। संतहापरिकित्तिया ॥ ५८ ॥३५८ | सो सोकने एकदेसविलागेसर्वनारकी तेजलेसर्य कह्या एकह्यापबीका कासविचारने तेनारकीऊकहरू च च्यारप्रकारे पर लोगस्सएगदेसंमि । तेसवेवियाहिया। एत्तोकालविल्लागंतु ।तेसिंवोचंचनविहं॥५॥ ॥ संचनामाश्रीअनादिकासनाले अन्नारकीनाजीवनोअंतपणानयीसदा नि लवस्तिनिकॉयथिति अाजषानीयिसिंन्यादिसहितगुज ७६१ || संतश्पप्पएाश्या। अपद्यवसियाविय । ए होसे विईपमुच्चसाश्या । संपधवसियाविय॥ तिन्मात्री For Private and Personal Use Only

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