Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

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Page 421
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shei Kailassagarsuri Gyanmandie अ० अपामूकनोलेठीपणाभुत् अ. अनंतकालनो न नस्कृष्टोतिरूपमे अं अंतर्मुफजिजघन्य ले लेंडीजीबने तेंडीपर्युपांमवानुमं या अ३६ अमुचण ३॥ अपनकासमुक्कोसं । अंतोमुअत्तंजहन्नयं । तेदियजीवाएं। अंतरेयं तरोप उनकृशे कहो । एक एतेंडीजीवना नेदय वएयिकी गंगंधयारसपी फरसयीसं संस्बानना लेदयीपणा वि लेदना हजार वियाहियं ॥३॥ एएसिवन्ननचेव। गंघनरसफास। संगगादेसनेवावि । विहाएाइंसह . १५५ च चनुरेंडीजे जीव वेप्रकारे कह्या प० पर्याप्ता अपर्याप्ता' ले ने चनरेंडीनालेद | स्ससो ॥१५५॥ चरिंदियाळेजेजीवा । विहातेपकित्तिया । पद्यत्तमपद्यत्ता। तेसिनेएसुहा सांत्मसमुजकहलायकाोय चौरिंडीनी जातपण चारेंडी म. माषी म. मसा तेम ल लमराकीमा चरेंगीनीजातपती दिद। मे ॥१६॥ ४६ अंधियापोनियाचेव। मबियामसगानहा । लमरेकीमपयंगेय। गीया लिंक ढिकए अनेकुंकण एबे चनुरेंडीनीजात कु. एपएा चच्रेंडीनीजानसिं एचौरेंडी न०एपपाचनुरेंडीवि विवि मोएचनुरेंडीनी विक गेकंकणेतहा ॥५॥ ५७ कुकुमसिंगिरिमिय । नंदावत्तेयविडिए । मोखलिंगारियाय । विर एचरिंडीनीजातअन्एपाचनरेंडी - अ.अलिपपाचौरिडीमा मागधनामा रोअशिरोमनामा चनरेंगीरो० बेअक्षर पाबशाप ४५६ सिंअविवेहए ॥४८॥ अडिसेमाहएअधि। चनरेंडी रोमएविचितेचित्तपए । दनाभेदकरता For Private and Personal Use Only

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