Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
| ह हरिनीला तणानुपरपाणी आवे हरलएका ८६ फ० अरहिमएकप्रकारेंचेअपकायनो अघोरासु सूक्षमनिहाअपकायनेनदीमांहेकह्या अ३६
हरतणमहियाहिमे ॥८६॥ एगविहमनाएत्ता। प्रकारेनथी सफमातवियाहिया तीर्थ हवैअपकायसु-सूक्ष्म अपकायनाजीवस सर्वलोकमांव्यापी सोसीकनाएकदेसनेविषेबा बादरअपकायनाजीव हवे संग्छता त्रयी कहेले सुकुम्मासबसोगंमि। रबाडे योगदेसेयवायरा ॥८॥ अपकायनाकासयीकहेडे संतर अाश्री डेमोपणनाएअपकायनो अ. अनादिनाडे एअपकाय नियिति आत्रीआदिसहित ले सक्नेथितिनोडेमो आवे ते लगीतसहिनप पप्पएाश्या । अपयवसियावियनो जीव। विश्पमुञ्चसाश्या। सपद्यवसियाविय ॥८॥ स. सातसहस्र वरस न उनकृष्टिनए, आ- आनुषानीयिति अपकायनी अं अंतर्मुर्तजन्जपन्यस्लिनि ८० हवे सत्तेवसहसा। वासार्कोसियालवे । आनविश्वानुएं। अंतोमुतत्तंजहलिया ॥९॥ कायास्ल अन् अनंताकासुबुष्टि अंअंतमुतन ज जघन्य का कायस्विति या आपकायनी'. अनमूकायते निकहेले असंखकापसुकोसा । अंतोमुत्तंजहलिया । कायईिआनएं । कायंतुअमुंच एनसोकापरहे ए७ अ अनंतकाल ना उत्क्रष्टा अं अंतरमुतन जघन्य विलोयिक स- पोत्तानाअपकाय आन्नापका ज॥५०॥ अपंतकासमुक्कोस । अंतीमुजतंजहलायं। विजढंमिसएकाए ।आन|
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447