Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah
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| पि० धर्म नेनेबसलबे द० धर्मनेविषे निश्च यः पापयकी बीहे हिमोचनोवांछ । जो जोगेधर्मव्यापारे करी स सहित ने तेजोस अ-३५ | पियधम्मेदढधम्मे । सफुए वद्यलीरुहिएमएँ एवं जोग समानुत्तो ॥ एतेजीब तेनुसेसंता स्याने तु पूर्णे परिणमे २८ हवे पदमले प० पानसांथोमांजने को क्रोधमान माया सो सोमपातपाथीमाळेजेनैप रागद्देषरहित | परिणमे ॥२८॥स्यानोपकरराफेडेपयफकोहमाोय। मायासोलेयपयएफए । पसंतवित्ने दंत नुपसम्युचित्तजेनाजो मनवचनकायानाजोगवसे के जेहने न सिद्धांतलगतांजेतप सध्तेम प० थीमावचननुं नु नपसात तस्यापि | प्पा । जोगवनवहाएाय ॥ २७ ॥ करवो तेतपयंत छाए २९० तहा पयएवाश्य। नवसंतेजिइंदि| सम्यो एनिजितेंडी ए० एहवेधर्मनेव्यापारेकरीसहितकएप० पदसल्याने परिणामें परिणामे ३७ हवेशकसलेस्यानो अन् आतअने ए। एयजोगसमानुत्तो। ते जीव पह्मसंतुपरिणामे ॥३॥ सरुणकहेले अहरुहाणिव. रोडध्यानव ने धर धर्मध्यानसकसध्यान ध्याए परागईषयीनपशम्यो ले चित्तजेनोर्दन्दमतेंडी स पांचसमतिवंतेगुन्नपण चित्ता । धम्मसक्काजाय। पसंतचित्तेदंतप्प। समिएगुत्तिएगुत्तिम प्तित्रागुयानेविष ३१ सागर हिनैवी वीतरागीशए नु० रागद्देषलपसाम्याचे जेणे नि जितेंडिय ए० एवा जोगगुपा ने व्यापार सकस १६ | ॥३१॥ सरागेवीयरागेवा । नवसंतेनिदिए। एयजोगसमानुत्तो
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