Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah

View full book text
Previous | Next

Page 395
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सुन सूकमपृथवीकायना जीव स सर्व लोकमांव्यापी दोसोकने एक देसे एकवित्नागेबाबादरपू ए० एकह्यापडीकासनीमरजा अ३६ सङ्गमासबसोगंमि। रह्याडे सोगदेसेयबायरा ।यवीकायनाजीवडे एत्तोकालविल्लागंतु। स्जितिवित्माग ते० तेषंधादिक पुदगलनाबु-शिष्यमतेंच्यामा सं बतायात्रीतेपुदगलमअनादिकालनाअन्तेपुद्गल बागले अनंतकालसगे | तेसिंवुद्धंचजन्विहं ॥१२॥ गुरूकहेडेच संतश्पप्पणाश्या । अपद्यवसियाविय । सेलेलएशी अंतरविपम् रहिन थितिआत्रीआदिसास. कासपितिनोलेमोन्याचे तेत्मणी अंतसहित अन् असंष्यातीकाल एक नामें रहबाआधीपुदगलनी ३० एकसमयजैन चसाईया । हिनने संपद्यवसियाविय ॥१३॥ १३ असंघकालमुक्कोसं । नत्क्रष्टियिनि कंसमयंजह जघन्य स्थिति अ. अनीव रूक जेरूपीपुद्गसतेनी रिएथितिकहीतीरयंका १५ अ अनंताकारुनुमुन्ऋष्टोऑनरुपमयोजिहांफ्नए। नन। अजीवापायरूविणं । विश्एत्तावियाहिया ॥१७॥ अएतकालमुक्कोसं ॥ तोपुदगल | तिहांयीबीजेगांमे रहया एकसमयजघन्यांतस . अ अजीवपुदगलरूपीतुं अंांतरू अनंताकालनुविन् कद्युतीर्थकरें आश्रीपुदगलनीठन्क्रशिपिति इकोसमजहन्नयं । अजीवापायरूविएं। अंतरेयंवियाहियं ॥१५॥ व वएयिकी पुदगल परिणाम्या बेगएमा र तीषादिरसपी फा० फरसयकी तेम सं संस्थानयकीपदावि जापावापुदगलपरिणाम्याचे पुदगलनोपरि ||५३३ वन्न गंध चेव । गंधषी रसई फासतहा। संगरायविन्नेन । पामते धादिकनीपरिणा For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447