Book Title: Uttaradhyayan Sutra Mul Tabarth
Author(s): Sudharmaswami, Khetsi Jivraj Shah
Publisher: Khetsi Jivraj Shah
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
४२3.
| दो बेसागरोपमअने पख्यनो अ. असंख्यातमो माग अधिक चः पूरणेनन् उत्क्रष्टी ५३ जान्जेने तेजोसेस्थानीथिति | अ-३५ दोनदहिपसिनवमं । असंपलागंचनकोसा ॥५३॥ जातेछए विश्व निश्चै ननुत्क्रष्टिने एकसमय अधिक जजघन्य प. पद्मसेस्यानी यितिद० दससागरोपमने एकमुशर्तअथ | दु। नुक्कोसासानसमयमशहिया । जहन्नेणं पह्माए। दसनेमुत्ताहियाकंनक्कोन किनुत्क्रष्टिजे ५५ जाजेप० पासेस्यानी स्वितिरव निश्चैनन्नवक्रष्टि सा एक समय अधिक जजघन्य सु- सुकलस्यानी सा ॥५४॥ जापह्माएरिखा। जक्कोसासानसमयमज्ञहिया। जहाँसुकाइन ति० तेत्रीससागरोपम मुतन अधिक जेणे सेस्याएंजेगतिमानुपजे कि कृष्ण १ नील २ कापोत ३ त्रएपण ए. ए. अधर्मसे नित्तीसमुत्तमशहिया ॥ ५५॥ तेकहेले ५५ किएहानिलाकानतिन्निवि ॥ एयाने अहम्म स्या , एएो जीव.. . पुर्गती उपजे ५६ ते तेजोपद्म सुकल तिः चपापपा ए धर्म खेसान । एयाहिं तिहिविजीवो । उगाजे ववद्यई ॥ ५६॥ तेनुपह्मासुकातिन्निवि। एयानध
स्या एक एपोंतिक नील सेस्याएंजीव सोठ सदगति उपजे ७ से सेस्या स० सघसाएं प पहिलासमय ०२३ म्मलेसान ॥ एयाहिनिहिविजीवो । सोग्गश्वववद्यई ॥५३॥ साहिंसवाहि पट्ठमेसमय
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447