Book Title: Updeshsaptatika
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
View full book text
________________
।
अत्रा श्रीचन्तकृदशासूत्रोक्तोऽसिमुक्तकाभिधेयकुमकसाधुसम्बन्धः सन्धिवन्धेन प्रस्तयतेइह जरइखित्ति अत्थर पसिधपोलासनामि पुर धसमिध । जिाहं वस लोय परधएअनुप जलहिव जु परकिहि असुम्य ॥१॥ जयजयव मग्गण जगई जस्स जयनाम रज पालेश तस्स । न हु देससीम जपेत्र जस्स अश्वप्रमरिउधम * जगि श्रवस्स ॥३॥ पञ्चरक सरस्सा सिरीय जाणि तसु सिरीय जक अश्मदुरवाणि । अतुबमहरूवखावन्नखाणि वरकमलसुकोमलचरणपाणि ॥ ३ ॥ इत्यंतरि सुमिणहमति दिछ अश्मुत्तयतरु अश्सयबरिछ । सा तम्मि चव दिवसम्मि गन नबह जेम जलधार थप्न ॥ ४॥ नवमास अप अध्मदिणम्मि पसवा सा नंदण सुहखाणस्मि । अश्मुत्तय तसु अनिहाण किक, अजन्नव नव मत्र नयरि सिद्ध ॥ ५ ॥ इत्यात इस्थि सो संचरंत पिउमाश्मणोरह पूरयंत । दीसंत सुपिय देसण आईव निवु मन्नइ नियकुलघरपश्व ॥ ६॥ मंदरगिरि सुरतरु अंकुरु व, सो यः पियपरि गुणिपुर मम्मएयण क्या जणंतु सह परियण पाणंद रूवि दिव ॥७॥ घात-इत्यंतरि सामिय सिझिहिं गामीय विहरंतन गिरिवीरपहो । संपत्त तिहि पुरि सेविय नरमुरि पुन्निमचंदसमाणमुहो। जास-~-नाणपाल श्राविय नारद
चाविच चरमजिणिंदचंद । सामिय इह पत्तन विजयवंत मुश्विरपरिवारिहिं गहमहंत ॥ ए॥ तमु दिश पारितोसिय महंत धणदाएसयं बडुजत्तिमंत । अह चहिय पिलिय गुणिहिं राय गंतूण तत्थ पडु नमः पाय ॥ १० ॥ तिपया हिणपुव नमित्तु नाद संतोस धरइ नियमणि श्रगाह । पारझ धम्मदेसण जिणेण पीयूमवरिसमडुरत्तर्णण ॥ ११ ॥ जो जब। सम्बसंसारसार नरजम्म खहे विण श्रश्नदार । जिएवम्मरम्म जयदिन साग वाराह साहट सिजिमग । १५॥
4us
10

Page Navigation
1 ... 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498