Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 495
________________ अञ्चतपावोदयसंनवा, जे जीरुणो नवगणा जवाउँ । तेसिं सुहाणं सुखदो उवाजे, नो संजविला नवसन्निवा ॥५॥ धणं च धन्नं रयणं सुवन्नं, तारुमरूवाइ जमित्थ अन्नं । विकुछ सवं चवखं खु एयं, धरेह नवा हियए विवेयं ॥ ५६ पुत्ता कलवाणि य बंधुमित्ता, कुटुंबिणो चेव श्हेगचित्ता। धाजस्कए पावसा समेए, न रकपत्थं पनवंति एए ॥ ५ ॥ नेसि मणे पावमई निविद्या, निवाइवित्ती पुण संकिविता। कयाऽवि ते दुति न हितुहा, सवत्थ पावंति दुहाइ दुझा ॥ ५० ॥ चनं वयंता जिवचेश्याणं, संघस्स धम्मायरियाइयाणं । रुपति जवा सुखहं सुबोहिं, अवन्नवाएण पुणो श्रबोहि ॥ एए । यहाषया दोसवसाचावा, मुषंति तत् न ? किं पि पावा। 483

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