Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 494
________________ । मूखम्। सपदेशसप्ततिका. ॥ ४१॥ पावाउ पावे स तालुवेहं, रसाणुरा श्य पुरस्कगेहं ॥ ४ ॥ गदकुंजस्थसगंधदुधो, दिंदिरो घाणरसेण गिको । हहा मुहा मचुमुहं जवेई, को गंधगिळि हियए वहेई ॥ ५० ॥ फासिंदियं जो न हु निम्गहेई, सो बंधणं मुफमई बहेथे । दप्पुध्धुरंगो जद सो करिंदो, खिवेइ थप्पं वसणम्मि मंदो ॥५१॥ श्क्कोऽवि को विस नदिन्नो, मुखं असंखं दलई पवन्नो। जे सबदा पंचसु तेसु बुझा , मुझाण तेसिं सुगई निसिझा ॥ ५५ घईब दुझा विसया विसा, पहा नवे जेहि महाविसाः। जेहिं पया टुंति परबसाउँ, न सेवाणिज्जा खलु ते रसाठ ॥ ५३ ॥ तित्थंकराणं निउणा पमाणं, कुषंति जे उधिय चित्तमाएं । सर्व पि तेर्सि किरियाविहाणं, संजापई दुकसहस्सताणं ॥ ५ ॥ H ॥३१॥

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