Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 492
________________ चपदेशसप्ततिका ॥ २४० ॥ साबसा तदा विसेसं, जाणिक जंपिक न दोसबेसं ॥ ३७ ॥ गुरु दिए धरिचा, सिस्किज नाणं विषयं करिता । रथं वियारिक मई सम्मं, मुखी मुषिका दसनेयधम्मं ॥ ३७ ॥ दासाश्यक परिषयिचं, कीं मया वह सजियहं । पंचमाया न हु सेवियवा, पंचंतरायाऽवि निवारियवा ॥ ४० ॥ सादम्मियाएं बहुमापदार्थ, जत्तीइ श्रपि तन्नपाणं । वजित रिग्धीइ तदा नियाणं, एयं चरितं सुकयस्ल ठाणं ॥ ४१ ॥ श्रहिंसणं सब जिया धम्मो, तेसिं विषासो परमो मुषितु एवं बहुपाणिघाट, विवयिधा कयपच्चवार्ड ॥ ४२ ॥ कोदे लोण तदा जपणं, दासेण रागेण य मलरे । जामुनेव उदारिका, जा पञ्चयं लोयगयं रिका, ॥ ४३ ॥ मो । 1126 मूलम् । 사모님

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