Book Title: Updeshsaptatika
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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चपदेश
वरसास बाहिरि पत्तच थविरसत्धि मुशिवर श्रमुत्तत । बाल बद्दल खिचंता गंतिय रमएक ि
कंतिय ॥६३॥
॥ ११५ ॥
मट्टी तणीय पाखि सो बंध खलहत जखवेगिहिं रुधर । चरितलाय जिमंमिगद मिस्ड्इ नाव जेम दंनिहिं करि पिचड़ * ॥ ६४ ॥ इचं नाव मुफ चलइ नाव इम जखि रमलि कर सो जाब । वय अणुसार मई उप्पर सच्चिय दत्त जाह * नए गिजाइ ॥ ६५ ॥ थविरमुणिं दिहिं ताव सुकीय तबय [हिं खुड्डयमुखि संकिय । खकिय जाव होमुह जार्ज समवसरणि मुसित्यिहिं वा ॥ ६६ ॥ विरमुणिहिं पड़ गई सादिय दगमट्टी य नए एलि विराहिय । मा हीलर छाड़मुत्तकुमारं वरचचियसंजमजारं || ६ || श्रन्नपादाहिहिं ससालह अम्ह सीस खुड्य परिपाखह । इय पहु जाम जलिय ता पुढई घविरमुशिंदे सुता श्रई ॥ ६० ॥ जयवं जब जब कुमारो चरमतणू अचरिमतणुधारो । पडु श्राइस जब चरमंगी इय सुखिनु मुखि हुय मुहसंगी ॥ ६ए ॥ पडुपड़ लग्गिय सुडु खमंतच पुष पुरा विषयजन्ति पणमंत ! | इकारस अंगाई अहिक्रिय सिरि श्रमुत्ति चरणविदिसकिय ॥ ७० ॥ तत्र करे गुणमणिसंवश्वर न धरई र रई दम महर । श्रकम्मडुम मूलुसिंदिय केवलनायललि अनि दिय ॥ ११ ॥ तेर वरिस सबाऊ पालिय संजमजसि श्रप्पचं परका लिय । निधुरमणि सयंवरि वरीयत दंसणनारयणगणनरीयत ॥ १२ ॥ घात -- इलिपरि सहुयत्तणि जेम बुद्द - ऋषि श्रमुत्तर जिणधम्मकिय । तिथि परि धाराधर सिवसुह साधन जवियलोय खेमेहिं सहिय ॥ ७३ ॥
॥ इति श्रीतिमुक्तकसन्धिः ॥
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सप्ततिका
॥ २२५ ॥

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