Book Title: Updeshsaptatika
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 488
________________ मूखम्। उपदेशसप्ततिका. ॥१३॥ कोई विरोहं सयर्स चश्स्सं, कया थाई मदवमायरिस्सं ॥ १६ ॥ सम्मचमूखाणि अणुव्वयाणि, अहं परिस्सामि सुहावहाणि । त पुणो पंचमहहयाणं, नरं वहिस्सामि सुवहाणं ॥ १७ ॥ एवं कुणंताण मणोरहाणि, धम्मस्स निधाणपदे रहाणि । पुनजाणं होसुसावयाणं, साहूण वा तत्तविसारयाणं ॥ ७ ॥ इति जे सुत्तविरुधनासगा, न ते वरं सुदृवि कहकारगा। सखंदचारी समए परूविया, तईसणिडावि शश्व पाविया ॥ रए । अश्कमित्ता जिराययाणं, सर्वति तिहं तवमप्पमाणं। पति नाणं तह दिति दाणं, सई पि तेसिं कयमप्यमाणं ॥३०॥ जियाण जे धापरया सयाऽवि, न बग्गई पादमई कयाऽदि । तेसि तवेऽपि विणा विसुकी, कम्मरूपणं च हविज सिप्पी ॥१॥ 76 ॥२३॥

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