Book Title: Updeshsaptatika
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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पपठ
श्रह नंदा जास जी जायद मष उल्लास । सामि कह तुम्हि किंहि जाएसडु वीरपासि श्राव आएसहु ॥ २६ ॥ गोयमगणदर वहिं पंतन महदरकुमरिहिं सो संजुत्तत । रूवकंतिरवि जिम दिप्पंतन उम्गपरीसह रिच जिप्पंतन ॥ ३७ ॥ सामिय कुभर पिरिक समुवागय पुइ व सम सागय । देसा मियर सिद्धिं सिंघेई जवदादसु परिव चेई || २८ ॥ इडु असारसंसार गणिका धम्मसार नरजम्मि सुशिखाइ । देवखसिरि जिम धयवरांचल घजुषणपरिया सह चंचल | २५ || जररस्कसि आवर धावंती बलइ सयएजए इत्य न जंती । तसु जो छाप्प न ररकड़ मुरको अंतकाखि सो दोइ विखरको ॥ ३० ॥ श्राहिवाहि जा तपु न विवाइइ सोगसंग जा अंग न गाहड़ | इंदियस त्तिद्दाणि नदु गर जाव पिंकवल पयकल छ ॥ ३१ ॥ ताव धम्म आयरिहिं करिकार जी त्रियजम्मतच फल लिकइ । सबपंजखि जिल्वाणी पिक जरामरण हुह पुरिं गमिकइ ॥ ३२ ॥ दीपही एजा करुणा किमाइ पाहणीय जाए। नेव दषिकाइ । अलिय आदत न निवारन अप्पण एवं संसारह वार ॥ ३३ ॥ घात - इचाइ सुविश तत्त मुखेविण चिसिहिं रंजिय कुमरवरो । संपत्तच नियधरि बुझइ अवसरि आवीय जणणी जयपुरो ॥ ३४ ॥ जास - घणवुइ वण जिम लक्षसीयल मह मणु श्र धम्मि नए वसीयत । बधमास जिल्वर वस्काणीय धम्मवत्त मई निश्चल जातीय ॥ ३५॥ा. धम्म इक परमत्थ मुसिकाइ अवर सहू शकयत्य गणिकार । जब चिंतामणि करियसि कक्षीय तह किं काच करइ जति रुखीयत ॥ ३६ ॥ सामिय पासि गहि इचं दिस्का बहु परिपामिसु निश्चल सिस्का । घरि घरि गोयरचरिय जमेसो चलचित्तपरंग दमेसो ॥ ३७ ॥ तो पियरिहिं पुष्यित कुमारो, एवकतई किम मुणिय वियारो । मडुर वयपि अमु
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