Book Title: Updesh Rahasya
Author(s): Chandrashekharvijay
Publisher: Kamal Prakashan
View full book text
________________
अस्मिन् हृदयस्थे सति हृदयस्थस्तत्त्वतो मुनीन्द्र इति । . . हृदयस्थिते च तस्मिन् नियमात्सर्वार्थसंसिद्धिः ॥२॥" इति ।
अत एव भगवदबहुमानगर्भतया स्वच्छन्दयतिपरिणामः संसारमोचकादिपरिणामवत् प्रत्यपायबहुलतयाऽशुभ एव निर्णीतः तदाहुः... गलमच्छभवविभोअंगविसि (स?) अभोईण जारिसो एसो।
मोहा सुहोवि अमुहो तप्फलओ एवमेसा वे(वि) त्ति३" ॥५॥
नन्वेवं शुद्धः परिणामो विशिष्टश्रुतोपयोगादेवेति माषतुपादीनां तदनुपपत्तिरिति शुद्धपरिणामहेतुमुपदर्शयन्नाहसुद्धो सुओवओगा मग्गणुसारित्तओ अ केसिंची। जायइ गलिए नियमा मिच्छत्तकए विवजासे ॥६॥ . शुद्धः परिणामः, श्रुतोपयोगात्प्रवचनज्ञानाद्बहूनाम् , केषाञ्चिच्च माषतुषप्रभृतीनाम् , मार्गानुसारित्वतः, मार्गश्चेतसोऽवक्रगमनं भुजङ्गमनलिकायामतुल्यो विशिष्टगुणस्थानावाप्तिप्रगुणः स्वरसवाही जीवपरिणतिविशेषस्तदनुसरणशीलत्वात् , जायते-उत्पद्यते, बहुविशेषावधारणक्षमश्रुतज्ञानादि(दे)व मार्गानुसारित्वाहितशुभौषसंज्ञानादपि रौद्रसंसारदुःखनिस्तारकगुरुकुलवासबहुमानाद्भगवदाहुमानाद्भगवद्भक्तिवासनोपपत्तेः, दृश्यन्ते हि बहिबहुश्रुतमपठन्तोऽप्यतितीक्ष्णसूक्ष्मप्रशतया बहुपाठकस्थूलप्रज्ञपुरुषानुपलब्धं तत्त्वमुपलभमानाः कतिपये ।
. नन्वेवं गुरुविषययाथार्थ्यज्ञानावरणविगमात्तत्तत्त्वज्ञानोपपत्तावपि माषतुषादीनां शेषतत्त्वविषयविभ्रमसद्भावात् कथमेकान्त३ गलमत्स्यभवविमोचकविशोण (विषान? ) भोजिनः यादृश पषः । मोहात् शुभोऽप्यशुभः तत्फलत पषमेष (पोऽपी)ति ॥

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 ... 194