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अधिकतर कोशिकायें द्विविभाजन द्वारा अपनी वृद्धि करती हैं। प्रत्येक विभाजन में टैलोमर छोटा होता चला जाता है। जब कोशिका विभाजन एक निश्चित सीमा पर पहुंच जाता है तो यह टैलोमर कोशिका विभाजन पर निरन्तर नजर रखता है।
जीन की खोज ने वैज्ञानिकों के विभिन्न आयाम प्रस्तुत किये हैं। ये जीन डी.एन.ए. पर स्थित होते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मनुष्य के वृद्ध होने एवं आयुष्य से संबंधित सभी सूचनाएं इन जीनों पर ही लिखी होती हैं। कब कोशिका-विभाजन को बंद होना है, कब टैलोमर समाप्त होना है, आदि ये सारी सूचनाएं इन्हीं जीनों पर लिखी होती हैं। वैज्ञानिकों ने कुछ जीन तो ऐसे खोज निकाले हैं जिनका सीधा संबंध आयुष्य से है। सी. एलिगन नामक बैक्टेरिया के एक ऐसे जीन को खोजा जा चुका है जिसे यदि निष्क्रिय कर दिया जाए तो उस बैक्टेरिया की आयु बढ़ जाती है।
___ इतनी खोजों के बावजूद भी अभी वैज्ञानिक पूर्ण संतुष्ट नहीं हो पाये हैं। आज इनका मानना हैं कि जीन भी आयुष्य में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन सारा नियंत्रण इनके पास नहीं है। लगभग 35 प्रतिशत आयुष्य की वजह जीन है लेकिन शेष वातावरण, खान-पान आदि पर निर्भर करता है। कर्म-जीन का नियंत्रक
जैसा कि ऊपर कहा गया है कि जीन बुढ़ापा एवं मृत्यु दोनों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जीन ही ये दिशा निर्देश करते हैं कि कब व्यक्ति को वृद्ध होना है तथा कब उसकी मृत्यु होनी है यानि कि उसका आयुष्य कितना है ? ये जीन वंशानुगत चलते रहते हैं। यहाँ प्रश्न यह है कि इस जीन का नियंत्रण किसके पास है ? वह कौन-सा कारण है जो जीन को निर्देश देता है? विज्ञान में इन प्रश्नों के उत्तर नहीं खोजे जा सके हैं, लेकिन इनके उत्तर भारतीय दर्शनों में परमाणु इतने सूक्ष्म होते हैं कि मोटी से मोटी दीवाल को भी भेद कर पार निकल जाते हैं। ये कर्म प्रत्येक जीव के साथ जुड़े रहते हैं तथा ये ही तय करते हैं कि वृद्धावस्था कब आनी है तथा किसका कितना आयुष्य है। इन कर्मों में कुछ विशेष होते हैं जिन्हें आयुकर्म कहते हैं। ये आयुकर्म जीव के आयुष्य का निर्धारण करते हैं। आयुकर्म पूर्वभव (यानि कि पिछले जन्म) में ही जीव के साथ जुड़ जाते हैं। गति का निर्धारण भी कर्म के अनुसार होता है। ये कर्म ही जीन के नियंत्रक होते हैं तथा जीन इनके निर्देशों को आगे संप्रेषित करते हैं।
-बी-26, सूर्यनारायण सोसायटी, विसत पेट्रोल-पंप के सामने,
साबरमती, अहमदाबाद-5
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तुलसी प्रज्ञा अंक 124
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