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पारित कर दे और उसकी अनुशंसाएं भारत में लागू हो जाए। यह प्रतिवेदन भारतीय शिक्षा में क्रान्तिकारी पहल की अनुशंसा करता है, शिक्षा अनिवार्यतः बाजारोन्मुखी हो, यह प्रतिवेदन की मंशा है। इस प्रतिवेदन के प्रमुख बिन्दुओं को यहाँ प्रसंगवश उद्धृत किया जा रहा है :___1. “शैक्षिक कार्यक्रमों में प्राथमिक शिक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए और इसे सभी के लिए अनिवार्य और मुफ्त किया जाना चाहिए। प्राथमिक शिक्षा का लक्ष्य हासिल करने के बाद माध्यमिक शिक्षा को भी 15 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए आवश्यक बनाया जाना चाहिए। ____ 2. शिक्षकों के सतत् प्रशिक्षण एवं गुणवत्ता-विकास के लिए कानून बनाया जाना चाहिए।
3. सूचना प्रौद्योगिक तथा कम्प्यूटर नेटवर्क से युक्त स्मार्ट स्कूलों की स्थापना की जानी चाहिए। इस कार्य को राष्ट्रीय मिशन मानकर अंजाम दिया जाना चाहिए और भारत के प्रत्येक जिले में एक स्मार्ट स्कूल की स्थापना की जानी चाहिए। इस मिशन को पूरा करने की दिशा में कर-लाभ देकर निजी क्षेत्र को भारी निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
4. शिक्षकों की भूमिका को प्रोत्साहक एवं उत्प्रेरक के रूप में तब्दील किया जाना चाहिए तथा बच्चों को किताबों से पढ़ाने और लिखाई कराने के बदले अभ्यास एवं अनुभवों के जरिए शिक्षित करने पर जोर दिया जाना चाहिए। पढ़ाए जाने के बदले बच्चों को आज के सूचना युग में सूचना युग के बहुविध माध्यमों से सीखने देना चाहिए और शिक्षकों को इसमें मददगार की भूमिका निभानी चाहिए।
5. माध्यमिक और उससे ऊपर के विद्यार्थियों को आवश्यक व्यावसायिक शिक्षा देने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
6. औपचारिक शिक्षा के विकल्प के रूप में दूरस्थ शिक्षा को महज पत्राचार की सीमा से निकालकर तकनीक के जरिए बढ़ावा दिया जाना चाहिए और इसके विदेशों से सीख लेनी चाहिए। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर यह स्वीकृत है कि बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने के लिए शिक्षा में मूल्यों का समावेश होना चाहिए। मूल्यों की शिक्षा ही शिक्षा की सही परिभाषा है। दुर्भाग्य से भौतिक सुखों के पीछे भागने की प्रवृत्ति के चलते भारतीय समाज में युवा दिमाग मूल्यों की ओर विमुख हो गया है। साथ ही सार्वजनिक जीवन में आदर्श व्यक्तियों का अभाव है और भारतीय समाज में चरित्र का संकट दरपेश है। लिहाजा, अच्छे और नागरिकता से युक्त समाज बनाने के लिए यह जरूरी है कि पूर्व-प्राथमिक शिक्षा में नैतिक शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए और प्राथमिक, माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा में भी इसे मजबूती से लागू किया जाना चाहिए। लेकिन इसके साथ यह सावधानी बरतनी होगी कि जाने या अनजाने विभिन्न वाद (छात्रों के दिमाग में) अपनी घुसपैठ न बना लें। स्कूल स्तर पर समान शिक्षातुलसी प्रज्ञा अप्रैल-जून, 2004
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