Book Title: Tulsi Prajna 2004 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 51
________________ तो वह तांबे का तार और उसके ऊपर का इन्स्युलेटेड कवर तात्कालिक ही जल जाएगा, विस्फोट हो जाएगा। अरे। आठसो एम्पीयर वाली पावरफुल इलेक्ट्रीसीटी तो शहर में रॉड पर के थंभे के बड़े वायर को भी जला देगी, पिघला देगी। ऐसी भयंकर उष्णता उसमें होती ही है। इसीलिए इलेक्ट्रीसीटी अग्निकाय जीव स्वरूप ही है। ३०० से ८०० एम्पीयरवाली इलेक्ट्रीसीटी जिसमें से पसार हो रही हो ऐसे खुले ट्वीस्टेड वायर को यदि पेड़ का स्पर्श हो जाए तो तुरंत ही वह पेड़ जलने लगता है, कोयला बन जाता है। यदि उस हाईटेन्शन वायर लाइन्स की नज़दीक में कोई बड़ा पेड़ हो तो उस पेड़ को खुले वायर में से पसार होती हुई इलेक्ट्रीसीटी अपने पास खींच लेती है और पेड़ को जला देती है। ऐसी बात जी.ई.बी. साबरमती-अहमदाबाद के डेप्युटी एन्जीनीयर मुकेशभाई संघवी बताते हैं। इससे इलेक्ट्रीसीटी तेउकाय जीवस्वरूप ही सिद्ध होती है। उसी तरह से यदि खुले हाईटेन्शन वायर के नीचे यदि रूई का खुला ढ़ेर वायर से ५/६ फुट दूर रखने में आए तो वह तुरंत जलने लगता है। इसीलिए तो रूई-जीन की मीलों में हाईटेन्शन वायर के आसपास रूई का ढ़ेर रखने की मनाई होती है। ऐसी गफलत से आग लगने की अनेक घटनाएँ दाहोद वगैरह की जीनींग मीलों में बन चुकी हैं। यह हकीकत भी इलेक्ट्रीसीटी को तेउकाय जीव स्वरूप में सिद्ध करती है। घर वगैरह में उपयोग में आने वाली सिर्फ पाँच या पंद्रह एम्पीयर वाली इलेक्ट्रीसीटी की गरमी अर्थात् उष्णता अल्प मात्रा में होने से उसे निर्जीव नहीं कही जा सकती अन्यथा तो दावानल या टाटा स्टील की भट्ठी की अपेक्षा अत्यन्त कम उष्णता वाली मोमबत्ती-अगरबत्ती इत्यादि की आग को भी निर्जीव माननी पड़ेगी। ठाणांग सूत्र में अंतो अंतो झियायंति' (८/७०२) इन शब्दों द्वारा तथा जीवाभिगमसूत्र में 'अंतो अंतो हुहुयमाणाइ' (३/२,१०५) ऐसे शब्दों द्वारा अंदर ही अंदर में अत्यंत तेजी से जलती हुई और इंधन मिले तो बाहर भी प्रकाश-ज्वाला-चिनगारी इत्यादि को उत्पन्न करती हुई अग्नि की बात आती है। श्री भद्रबाहुस्वामीजी ने पिंडनियुक्ति (गा.५९२) ग्रंथ में अग्निकाय जीव के सात प्रकार बताए हैं। उनमें 'विध्यात (=सुषुप्त) अग्नि ' के नाम से जो सबसे प्रथम प्रकार बताया है उसकी पहचान भी ऊपर बताई गई अग्नि के समान ही है। अंदर से सुलगती होने पर भी बाहर से उसके लक्षण प्रकट रूप से नहीं दिखने से ऐसा लगता है जैसे आग बुझ गई हो। इसलिए उसे विध्यात (=सुषुप्त) अग्निकाय जीव कहते हैं। किन्तु आवश्यक इंधन, वातावरण आदि सामग्री मिलने पर तुरंत उसमें से अग्नि उत्पन्न हो जाती है। यही लक्षण वायर में से पसार होती हुई इलेक्ट्रीसीटी में भी देखने को मिलता ही है। इसलिए पिंडनियुक्ति अनुसार वायर में पसार होती हुई बिजली का पूर्वोक्त (पृष्ठ-५,४३) विध्यात नाम के अग्निकाय जीव स्वरूप में भी स्वीकार किया जा सकता है। वह अंदर में बुझी नहीं होती। किन्तु अन्दर ही अन्दर धक-धक जलती ही है। इसलिए तो उसको छूने पर ही भयंकर जलन 46 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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