Book Title: Tulsi Prajna 2004 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 58
________________ अस्तित्व हम कहाँ मानेंगे। विज्ञान के पदार्थ से अथवा साइन्स के वर्तमान सिद्धान्त के आधार पर तो जल, अग्नि इत्यादि में तो जीवत्व की सिद्धि कदापि शक्य नहीं है।''39 उत्तर - जैन दर्शन ने पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय और वनस्पतिकाय के जीवत्व को स्वीकार किया है, किन्तु ये ही जीव शस्त्रपरिणत होने पर निर्जीव हो जाते हैं। HO (पानी) शास्त्रपरिणत न हो तब तक सजीव है, शस्त्रपरिणत होने पर वही निर्जीव है। पानी के H,O रूप में सजीव या निर्जीव अवस्था में अन्तर नहीं आता। इसलिए जीवत्व के लक्षणों के आधार पर वही पदार्थ सजीव या निर्जीव हो जाता है। 'चेतना' लक्षण से सजीव और चेतनाशून्य वही पदार्थ निर्जीव बन जाएगा। प्रकाश, उष्मा, दाहकता आदि सजीव या निर्जीव के लक्षण नहीं बन सकते। ये केवल पौद्गलिक गुण हैं। इसीलिए प्रकाश, उष्मा, दाहकता होते हुए भी नरक की अग्नि अचित्त है। प्रश्नकर्ता ने भी स्वीकार किया कि सूर्यप्रकाश, नरक की अग्नि आदि उपर्युक्त सारे लक्षणों के बावजूद भी अचित्त हैं । “लक्षण" वही होता है, जो निश्चित रूप से वस्तु की पहिचान बने। यदि वही लक्षण विरोधी पदार्थ में भी है, तो उसे लक्षण नहीं कह सकते । न्यायशास्त्र में इसे अतिव्याप्त, लक्षणाभास कहा जाता है। यदि नरक की अग्नि,' सूर्य का प्रकाश, तेजोलेश्या के अचित्त पुद्गल आदि अग्नि के सभी लक्षणों के बावजूद अचित्त या निर्जीव हैं, तो फिर किस आधार पर इलेक्ट्रीसीटी के इन्हीं लक्षणों वाले परिणमन को सचित्त मान लिया जाए? आकाशीय विद्युत् (विजू) की सचित्तता उसकी किस पर्याय में है, उसकी चर्चा हम कर चुके हैं। उससे पूर्व और पश्चात् वह सचित्त नहीं है। इस प्रकार आगमवचन की सापेक्षता को समझकर तथा "लक्षण" शब्द की सीमा को समझकर ही प्रकाश, उष्मा, दाहकता की व्याप्ति अग्नि के साथ समझी जानी चाहिए अन्यथा आगमवचन को भी सम्यग् रूप से समझ नहीं पाएंगे। इलेक्ट्रीसीटी और अग्नि के लक्षणों की समानता और असमानता-दोनों का विश्लेषण जरूरी है। छद्मस्थ व्यवहार के आधार पर ही यह निर्णय कर सकता है कि अमुक पदार्थ सचित्त है या नहीं। इसमें न तो दुःसाहस की बात होनी चाहिए और न रूढ़िवादिता की। 2500 वर्ष पूर्व जो स्थितियां थीं, उनके आधार पर व्यवहार के धरातल पर आगम का मार्गदर्शन हमें मिल सकता है। शेष तो हमें नई स्थितियों के परिप्रेक्ष्य में समीक्षा करनी होगी। उस युग में यदि प्लास्टिक था ही नहीं, तो हम कैसे यह अपेक्षा करें कि प्लास्टिक के विषय में विधिनिषेध का प्रतिपादन आगम करे। उसी प्रकार इलेक्ट्रीसीटी के विषय में भी समझना होगा। विज्ञान की सापेक्षता को समझकर उसको काम में लेना होगा जिससे निर्णय तक पहुंचने में हमें उसका सहयोग मिले। अब हम अग्नि और इलेक्ट्रीसीटी की तुलना करें- जलाना, तपाना आदि गुण इलेक्ट्रीसीटी में नहीं है, जैसे अग्नि में है। तार में प्रवहमान विद्युत्-धारा किसी को जला नहीं सकती है, जब तक उसे जलाने की प्रक्रिया प्रांरभ करने के लिए उपयुक्त सारी तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-जून, 2004 - - 53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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