Book Title: Tulsi Prajna 2004 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 35
________________ संचार-प्रौद्योगिकी के इस युग में हमें विश्व के अग्रणी देशों के समक्ष भारत को लाना है, देश की जनता को संचार प्रौद्योगिक की शिक्षा देनी है, इसके बिना देश आगे नहीं बढ़ सकता। इसका सीधा सा अर्थ यही है कि सूचना प्रौद्योगिकी के विस्फोट के नाम पर शिक्षा उन्हीं लोगों के साथ में आ जाएगी जिनके पास इस प्रौद्योगिक के लिए उपयुक्त साधन हैं।" यह रपट विकसित देशों की प्रेरणा से एक हद तक निर्देशित है। लेकिन सच तो यह है कि स्वयं उन देशों को शैक्षिक परिदृश्य प्रतिवेदन द्वारा प्रस्तावित शैक्षिक परिदृश्य से बिल्कुल अलग है। दरअसल, 'जिन देशों के निर्देशों को प्रेरणास्रोत मान हम अपनी शिक्षा को आकार देने में लगे हैं, उन देशों की शिक्षा व्यवस्था को भी हम पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं। हम अमेरिका के अनुकरण पर शिक्षा को निजी क्षेत्रों में देने का उपक्रम कर रहे हैं, किन्तु अमेरिका की शिक्षा का निजीकृत रूप क्या है, इसे समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। पहली बात तो यही है कि अमेरिका की 40 प्रतिशत शिक्षा भी निजी क्षेत्र में नहीं, दूसरी वहाँ शिक्षा सामाजिक अंकुश से मुक्त नहीं है, क्योंकि वहाँ शिक्षा व्यापारिक घरानों या निजी हाथों में न होकर सामाजिक संगठनों, जैसे- निकायों, फाउंडेशन, सोसाइटी आदि के हाथ में है। इन संगठनों का पूरा अंकुश वहाँ की शिक्षा पर है। यदि हम भारत में शिक्षा को निजी तथा व्यापारिक घरानों के हाथ में सौंप देते हैं तो निश्चय ही सरकार या समाज का कोई अंकुश शिक्षा पर नहीं होगा, अतः अमेरिका की सही नकल भी नहीं कर पा रहे हैं। 10 3. ये रोशनी हकीकत में एक छल है लोगों (विद्यालयी शिक्षा और अंतर्विरोधों की भयावहता) भारत में आर्थिक असमानता की तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी पर्याप्त असमानताएँ हैं। एक तरफ सम्पन्न आर्थिक तबके के लिए महंगे पब्लिक स्कूल हैं। इनमें आधुनिक तौर-तरीके 'आधुनिकता' के पर्याय हैं । यह अलग बात है कि यह सतही आधुनिकता पाश्चात्य अंधानुकरण और जनविरोधी मानसिकता पर टिकी हुई है। इनका एकमात्र उद्देश्य होता है बहुराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, पूँजीपतियों के माल के खपत के लिए एक बड़ा बाजार अर्जित करना। इसके बाद केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय तथा कुछ निजी शिक्षण संस्थाओं का स्थान आता है, जिनमें थोड़े कम आर्थिक हैसियत के विद्यार्थी स्थान पाते हैं। इसके बाद राज्य सरकार संचालित विद्यालयों का स्थान है। फिर उन विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा प्रेरित-संचालित विद्यालयों का स्थान आता है, जो अपना काम साक्षरता से शुरू कर औपचारिक शिक्षा तक विद्यार्थियों को पहुंचाते हैं। इन संस्थाओं की जैसी संरचनाएँ, वैसे ही इनमें कार्यरत शिक्षकों के आर्थिक स्तर हैं। प्राथमिक शिक्षा से जुड़ी इन योजनाओं (प्राथमिक/उच्च प्राथमिक विद्यालय, सम्पूर्ण साक्षरता, उत्तर साक्षरता, सतत शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा, राजीव गाँधी पाठशाला, जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम, शिक्षाकर्मी सहज शिक्षा, शिक्षांचल) में कार्यरत शिक्षकों का 30 - तुलसी प्रज्ञा अंक 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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