Book Title: Tulsi Prajna 2004 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ वाली कागज़ की पट्टी के ऊपर (सोडियम नाइट्रेट अथवा अमोनियम फोस्फेट के द्रावण में डाल कर सुखाई हुई तथा सिंदूर, पोटेशियम क्लोरेट, एन्टीमनी सल्फाइड और गौंद का मिश्रण जिसके सिरे पर लगा हुआ होता है वैसी, १८५२ में स्विडन के लुंडस्ट्रोमने खोजी) दियासलाई के वेगपूर्ण घर्षण से उत्पन्न होने वली अग्नि सजीव है उसी प्रकार टरबाइन के अन्दर व्यवस्थित मेग्नेट और कोइल की विशिष्ट व्यवस्था के कारण मेग्नेटीक फिल्ड में घूमते हुए कन्डकटींग रॉड के द्वारा चुंबकीय रेखाओं (Magnetic Lines) को काटने के लिए उत्पन्न होते हुए प्रबल घर्षण द्वारा उत्पन्न होती हुई दाहक इलेक्ट्रीसीटी भी बादर तेउकाय जीव स्वरूप है-ऐसा फलित होता है। यदि घर्षण के बिना वहाँ इलेक्ट्रीसीटी उत्पन्न होती है तो टरबाइन बंद हो तब भी वहाँ बिजली उत्पन्न होनी चाहिए परन्तु ऐसा नहीं होता। इसलिए 'संघरिससमुट्ठिए' पद द्वारा पन्नवणा और जीवाभिगमसूत्र में जो बादर सजीव तेउकाय का एक प्रकार बताया गया है उसी में प्रस्तुत इलेक्ट्रीसीटी का समावेश करना जरूरी है। यहाँ एक बात विशेष ध्यान देने योग्य है कि 'मिट्टी से घड़ा उत्पन्न होता है' ऐसा कोई कहे, उसका अर्थ यह नहीं है कि मिट्टी से उत्पन्न होने वाली प्रत्येक वस्तु घट ही है, क्योंकि मिट्टी से खिलौना, चूल्हा, तवा इत्यादि भी बनते हैं तथा मिट्टी से ही घड़ा उत्पन्न होता है, ऐसा भी उपर्युक्त वाक्य का अर्थ नहीं कर सकते हैं। मिट्टी की तरह सोना, चाँदी, तांबा इत्यादि में से भी घड़ा उत्पन्न हो सकता है परन्तु उपर्युक्त वाक्य का अर्थ इतना ही हो सकता है कि कुछ विशिष्ट प्रकार का घड़ा मिट्टी से उत्पन्न होता है।' मिट्टी से उत्पन्न होने वाली विशिष्ट आकार वाली वस्तु 'मिट्टी का घड़ा' कहलाती है- ऐसा ही अर्थघटन सर्वमान्य है। उसी प्रकार से 'घर्षण द्वारा अग्नि उत्पन्न होती है', ऐसा बताने वाले 'संघरिससमुदिए' ऐसा पनवणासूत्र का अर्थ ऐसा नहीं समझना कि 'घर्षण से उत्पन्न होने वाली सभी चीज सजीव अग्निकाय ही है, क्योंकि हथेली को घिसने से जो गरमी पैदा होती है, वह कोई अग्निकाय जीव नहीं है तथा सभी प्रकार के अग्निकाय जीव घर्षण से ही उत्पन्न होते हैं', ऐसा अर्थ भी उपर्युक्त शास्त्रवचन का नहीं किया जा सकता, क्योंकि घर्षण के बिना भी सूर्य प्रकाश और मेग्नीफाइंग ग्लास के माध्यम से तथाविध तेउकाय योनि बनने से तेउकाय जीव वहाँ उत्पन्न होते ही हैं परन्तु उपर्युक्त आगमवचन का अर्थ इतना ही करना अभिप्रेत है कि 'कुछ प्रकार के अग्निकाय के जीव घर्षण से उत्पन्न होते हैं। जिन पदार्थों में घर्षण से उत्पन्न होने वाली गरमी, दाहकता इत्यादि गुणधर्म देखने को मिलते हैं, उनको घर्षणजन्य अग्निकाय स्वरूप मानना-ऐसा ही अर्थघटन 'पन्नवणासूत्र' के 'संघरिससमुट्ठिए' वचन द्वारा शास्त्रकारों को मान्य है-ऐसा निश्चित होता है।' यद्यपि टरबाइन के माध्यम से एक विशिष्ट प्रकार के घर्षण से उत्पन्न हुई बिजली की तुलसी प्रज्ञा अप्रैल-जून, 2004 - - 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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