Book Title: Tulsi Prajna 1991 07
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 8
________________ पंक्ति १७ में 'खारवेल सिरि' के विशेषणों में 'सवपासंड पूजको' और 'सवदेवायतनसंकारकारको'-ये दो विशेषण भी उपर्युक्त कथन की ही पुष्टि करते हैं। अशोक के देहलीटोपरा स्तंभ लेख में एक वाक्यांश है-'कयानं मेव देखति'-केवल कल्याण ही देखता है। इसी प्रकार 'पासंड' शब्द भी दर्जनों स्थलों पर प्रयुक्त है। गिरनार के द्वादश अभिलेख में लिखा है-'राजा सव पासंडानि च पवजितानिच घरस्तानि च पूजयति दानेन च विवाधाय च पूजाय पूजयति'-राजा सभी धार्मिक संप्रदायों, प्रवजित सन्यासी और गृहस्थों को दान और विविध प्रकार की पूजा से पूजते हैं । तद्वत् खारवेल भी जैन धर्मानुयायी होते हुए भी अपने को 'सव पासंड पूजक' और 'सव देवायतन संकार कारक' लिखाता है। ६४ अंगों के स्मृतिक के रूप में यहां जैन आगमों की प्राचीन श्रुतसन्निधि का उल्लेख सर्वाधिक महत्त्व की बात है। आजकल जिनागमों के ६४ अंग नहीं मिलते किन्तु जहां स्थानकवासी और तेरापंथी ३२ अंग मानते हैं वहां मूर्तिपूजक-परंपरा में ४५ आगम मान्य हैं। अंग, उपांग, मूल, छेद, चूलिका और प्रकीर्णक अथवा अंग, अनंग, कालिक, उत्कालिकों- (ग्रन्थों) की संख्या ४५ या ८४ तक गिनी जा सकती है। . पाटलिपुत्र-वाचना में दृष्टिवाद लुप्त होना माना गया है। मुनि स्थूलभद्र द्वारा भी दस ही अंग संस्कारित किए गए ऐसा उल्लेख मिलता है किन्तु कुमारगिरि पर ६४ अंगों की श्रुतसन्निधि सुरक्षित की गई थी। यह उक्त उल्लेख में स्पष्ट है। इस प्रकार हाथीगुंफा की खारवेल-प्रशस्ति की उक्त दो ओळियां आगमों की संख्या-निर्धारण में प्रमाणरूप में प्रस्तुत की जा सकती हैं। हेमवंतसूरि की स्थविरावली में कुमारीगिरि पर हुई धर्मसभा के अध्यक्ष का नाम सुहत्थी लिखा है जिण कप्पिपरिकम्म जो कासी जस्स संथवमकासी। कुमारगिरिम्मि सुहत्थी तं अज्ज महगिरि वंदे ।। -परमेश्वर सोलंकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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